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________________ चलता रहा। इसके प्रकाशन की ओर प्रकाशक का ध्यान केन्द्रित नहीं हो सका। अब यह पुस्तक बड़े आकार में पाठकों के सम्मुख आ रही है। इसमें कर्म और अध्यात्म की चर्चा और जुड़ गयी है। मैं मानता हूं कि कर्म को समझे बिना अध्यात्म को नहीं समझा जा सकता और अध्यात्म को समझे बिना कर्म को नहीं समझा जा सकता। चेतना के निम्न अवतरण में कर्म का बहुत बड़ा हाथ होता है। उससे मुक्ति पाकर ही मनुष्य चेतना का ऊर्ध्व आरोहण कर सकता है। इस सापेक्षता के जगत् में एकाधिकार किसी का नहीं है। मानवीय कर्तृत्व को प्रभावित करने वाले तथ्यों में कर्म एक तथ्य है, किन्तु एकमात्र तथ्य नहीं है। पुरुषार्थ कर्म को प्रभावित करता है और उसे बदल भी देता है। साधना की यही पृष्ठभूमि है। इस सचाई को समझे बिना साधना का प्रयोजन नहीं समझा जा सकता। ___ सामाजिक व्यवस्था और राजनीतिक प्रणाली के बदल जाने पर कुछ लोग कर्म-सिद्धान्त की व्यर्थता समझ लेते हैं। उनकी धारणा है कि कर्म ऊंच-नीच, धनी और निर्धन बनाता है। यदि समाज-व्यवस्था में साम्य का अवतरण होता है तो फिर कर्म की सार्थकता कैसे ? उनके मतानुसार कर्म का सिद्धान्त सही है तो समाज में विषमता रहेगी। यदि समाज की व्यवस्था में समता है तो कर्म का सिद्धान्त सही नहीं हो सकता। इस अवधारणा ने कर्म को व्यवस्था के साथ जोड़ दिया, जबकि उसका संबंध व्यक्ति की आन्तरिक चेतना से है। कर्मशास्त्र, मानसशास्त्र और योग-इन तीनों शास्त्रों ने व्यक्ति का मूल्यांकन स्थूल व्यवहारों के आधार पर नहीं, किन्तु उन व्यवहारों के पीछे होने वाली चेतना के आधार पर किया है। अध्यात्म के सन्दर्भ में इन तीनों प्रणालियों का समन्वित अध्ययन बहुत अपेक्षित है। मानसशास्त्रियों ने अवचेतन मन के रहस्यों को अनावृत कर कर्मशास्त्रीय प्रणाली को नये संदर्भ में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय के समन्वय की कुछ रेखाएं उपलब्ध हैं, जो भावी विकास की आधार बन सकती हैं। शिविरकालीन भाषणों के संकलन और संपादन में मुनि दुलहराजजी का अथक परिश्रम इसकी उपलब्धि में हेतु बना है। आचार्यश्री तुलसी के दिशा-दर्शन में चल रहे इस प्रयत्न का स्वयंभू मूल्य है। मुनि नथमल २०३५, आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा गंगाशहर (राजस्थान) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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