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प्रस्तुति
- हम मनुष्य हैं और चेतना हमारी विशेषता है। चेतन और अचेतन के बीच एक भेद-रेखा है, और वह है चेतना । जिसमें चेतना होती है, वह चेतन होता है । अचेतन में वह नहीं होती । मनुष्य और मनुष्येतर प्राणियों में भी एक भेदरेखा होती है । वह है चेतना का विकास। जिसमें चेतना के विकास की क्षमता होती है अथवा जिसकी चेतना विकसित होती है, वह मनुष्य होता है। दूसरे प्राणियों में मनुष्य जैसी विकसित चेतना नहीं होती ।
चेतना का विकास शरीर के माध्यम से होता है । मनुष्येतर प्राणियों की चेतना नीचे की ओर प्रवाहित होती है, कामकेन्द्र की ओर प्रवाहित होती है। यह चेतना का निम्न अवतरण है। मनुष्य इस दिशा को बदल सकता है, चेतना का ऊर्ध्वारोहण कर सकता है, कामकेन्द्र की ओर अवतरण करने वाली चेतना को ज्ञानकेन्द्र तक ले जा सकता है ।
चेतना के ऊर्ध्व आरोहण की एक निश्चित प्रक्रिया है । उसके कुछ उपाय हैं। उन्हें जान लेने पर मनुष्य उस दिशा में यात्रा कर सकता है। जिन व्यक्तियों ने इस दिशा में यात्रा की उनके यात्रा -विरामों को जान लेने पर भी, उस दिशा में यात्रा की जा सकती है । भगवान् महावीर ने चेतना के ऊर्ध्वारोहण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण यात्रा की थी। उनके संकेत उस दिशा में यात्रा करने वालों के लिए आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । प्रस्तुत पुस्तक में यत्र-तत्र उन संकेतों की ओर इंगित किया गया है। सांकेतिक भाषा को समझना यद्यपि सरल नहीं होता, फिर भी उसे समझा जा सकता है । उसे समझने के लिए अतीत को वर्तमान में जीना होता है और वह वर्तमान का जीना ही अतीत को अनावृत कर देता है । प्रस्तुत पुस्तक में कोई नयी स्थापना नहीं है, केवल अतीत का अनावरण है ।
इस पुस्तक का पहला संस्करण छोटे आकार में सन् १९७१ में पाठकों के हाथों में आया । उनके द्वारा यह बहुत समादृत हुआ । शीघ्र ही यह संस्करण समाप्त हो गया । किन्तु दूसरी- दूसरी नयी पुस्तकों के प्रकाशन का सिलसिला
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