________________
• कर्मवाद पर तीन अंकुश
१७
कर्मवाद के अंकुश
१. आत्मा के चैतन्य स्वभाव का स्वतंत्र अस्तित्व ।
२. परिवर्तन का सिद्धांत । ३. विपाक को सापेक्षता ।
• कर्म मुक्ति के दो साधन - संवर और तप ।
•
मूर्च्छा का पहला माध्यम — देहासक्ति ।
• देहासक्ति से मुक्त होने के पांच सूत्र
मत खाओ। कम खाओ। रसों को छोड़ो। खाने में विविध प्रयोग
करो। शरीर को साधो, कष्ट - सहिष्णु बनो ।
• कर्म के अस्तित्व के चार प्रमाण• संसार की विविधता ।
● मनुष्य की रागात्मक और द्वेषात्मक प्रवृत्ति । • चंचलता ।
• पुद्गल और जीव का परस्पर प्रभाव ।
कर्म का केंद्र-बिंदु है— मूर्च्छा । साधना का केंद्र-बिंदु है - जागृति, जागरण । आदमी मूच्छित है । कितने काल से मूच्छित है इसका पता भी नहीं लगाया जा सकता। उसकी मूढ़ता अनादिकाल से है । इस घोर तमिस्रा का आदि-बिंदु अज्ञात है । प्रकाश की कोई रेखा फूटे, यह साधना के द्वारा ही संभव है । कोई काललब्धि ऐसी हो सकती है कि व्यक्ति को जागरण मिल जाये या ऐसा कोई निमित्त मिल
कर्मवाद के अंकुश : १८७
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org