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________________ से समझे। यदि अहितकर भोजन असातवेदनीय कर्म के उदय से खाया गया हो तो हम कह सकते हैं कि कर्म के कारण यह परिणाम भोगना पड़ा। किन्तु संयोगवश अहितकर भोजन खाने में आ गया। रोग हो गया। उसे हम कर्म का परिणाम नहीं मान सकते । अहितकर भोजन करना और अहितकर भोजन करने से रोग होना, इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है। अहितकर भोजन की घटना कर्म के कारण नहीं हुई, किन्तु उस घटना के घटित होने के कारण कर्म का विपाक हो गया। विमान की दुर्घटना आयुष्यकर्म के कारण घटित नहीं हुई किन्तु विमान की दुघटना हुई इसलिए आयुष्य कर्म की उदीरणा हो गयी। आयुष्य कर्म की उदीरणा होना और विमान का दुर्घटनाग्रस्त होना-ये दो बातें हैं। इनका परस्पर संबंध नहीं है। विमान की दुर्घटना हुई इसलिए आयुष्य समाप्त हो गया-यह संबंध हो सकता है। किन्तु उससे पहले इस घटना के साथ आयुष्य कर्म का संबंध नहीं है। प्रश्न होता है कि क्या ऐसा हो सकता है ? क्या सैकड़ों आदमियों का आयुष्य एक साथ समाप्त हो सकता है ? हां, ऐसा हो सकता है। आयुष्य-कर्म के दो प्रकार हैं-सोपक्रम आयुष्य और निरुपक्रम आयुष्य। कुछेक कारणों से आयुष्य कर्म में परिवर्तन हो सकता है, वह सोपक्रम आयुष्य है । जहां कोई भी निमित्त काम नहीं देता, आयुष्य कर्म में परिवर्तन लाने में कोई निमित्त सक्षम नहीं होता, वह है निरुपक्रम आयुष्य । इतना शक्तिशाली होता है यह आयुष्य कर्म कि निमित्त का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसमें इतनी तीव्र ऊर्जा और शक्ति होती है कि सारे निमित्त नीचे रह जाते हैं, वह ऊपर तैरता रहता है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। आयुष्य का जितना कालमान होता है, उसके पूरे होने पर ही प्राणी की मृत्यु होती है, पहले-पीछे नहीं। इसमें किसी भी निमित्त से उस प्राणी की मृत्यु संभव नहीं होती। ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, ऐसे निमित्त मिलते हैं कि एक साथ हज़ारों मनुष्य मर जाते हैं। यह सब सोपक्रम आयुष्य का खेल है। निमित्त से कर्म विपाक में आ जाता है। __ असात वेदनीय कर्म का बंध हुआ। उसका परिणाम यह है कि वह व्यक्ति को प्रतिकूल संवेदन करायेगा। उसके विपाक से प्रतिकूल संवेदन होगा। प्रतिकूल संवेदन किस रूप में होगा--यह सब निमित्तों पर आधारित है । किस काल, देश, क्षेत्र में होगा, यह अनेक बातों पर आधारित है। दो आदमी हैं। एक मद्रास का है और दूसरा राजस्थान का। मद्रास के आसपास रहने वाले व्यक्तियों में एक बीमारी पायी जाती है। अनेक व्यक्तियों के पैरों में सोथ आ जाती है। वे हाथी के पैर जैसे हो जाते हैं । राजस्थान में ऐसा नहीं राजस्थान में लू चलती है। यहां के लोगों के घुटनों में दर्द रहता है। शीतप्रधान देश में शीत-जन्य बीमारियां अधिक होती हैं और उष्ण-प्रधान देश में १८४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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