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बन जाये, मोह कर्म का विपाक कम हो जाये ? ऐसे पदार्थ हैं । ऐसा हो भी सकती है । यदि एक वस्तु के सेवन से काम-वासना को उत्तेजना मिलती है तो क्या ऐसी वस्तु नहीं हो सकती, जिसके सेवन से काम-वासना शांत हो जाये ? ऐसे पदार्थ हैं । पदार्थों का अभाव नहीं है । अभाव हमारी जानकारी का हो सकता है। जब परीक्षा का समय आता है, तब अनुभवी माता-पिता अपने बच्चों को ऐसी औषधियों का सेवन करवाते हैं, जिनसे बच्चों की बुद्धि, स्मरण शक्ति तीव्र होती है। और वह उनकी परीक्षा में सहयोगी बन जाती है ।
ध्यान -काल में शक्ति का व्यय होता है । मस्तिष्क की शक्ति बहुत खर्च होती है । हमारे मस्तिष्क की विद्युत् को बहुत काम करना पड़ता है । अधिक ऊष्मा पैदा हो जाती है । व्यय अधिक होता है । मैंने एक होम्योपैथिक चिकित्सक से पूछा कि शक्ति-संतुलन को बनाये रखने के लिए क्या अमुक पदार्थ का सेवन उचित होगा ? उसने कहा - बहुत ही उचित रहेगा। जो शक्ति खर्च होती है, वह इस पदार्थ से मिल जायेगी । शक्ति का संतुलन बना रहेगा । ध्यान में सहयोग मिलेगा ।
सरदारशहर के सेठ सुमेरमलजी दूगड़ के सुपुत्र भंवरलालजी एक कुशल चिकित्सक थे । वे बहुत ही अनुभवी थे। उन्होंने पन्द्रह-बीस वर्ष पूर्व मुझसे एक दिन कहा—- आपको मस्तिष्क की शक्ति का अधिक व्यय करना पड़ता है । लिखना, पढ़ना और चिंतन-मनन अधिक करना पड़ता है । इन कार्यों में मस्तिष्क की शक्ति का बहुत व्यय होता है । आप अभी से यह ध्यान रखें कि शक्ति का संतुलन बना रहे, जितना व्यय हो, वह पूरा होता रहे । नहीं तो फिर कठिनाइयां पैदा हो सकती हैं। उन्होंने कुछ उपाय भी सुझाए। उन्होंने कहा – आप सूखे आंवलों का सेवन करें, काली मिर्च का सेवन करें। कभी-कभी मुक्ता का सेवन करते रहें, जिससे कि जो मस्तिष्कीय शक्ति खर्च होती है, वह पूरी होती रहे ।
मैंने समय-समय पर इनका उपयोग किया और बहुत लाभ उठाया। पुद्गल जैसे कर्म के विपाक में निमित्त बनते हैं, वैसे ही कर्म के क्षयोपशम में भी निमित्त बनते हैं । कर्म का विपाक भी निमित्तों के बिना नहीं हो सकता । हम निमित्तों की बात को न भूलें ।
आवेगों के उपशमन में जैसे हमारी आन्तरिक परिणतियों को बदलने की ज़रूरत है, वैसे ही निमित्तों को जानने और उनको बदलने के प्रयोग की भी
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जरूरत
१७६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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