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________________ बाधक है, वह है कर्म । अब यदि वह अपने बाधक तत्त्व को नहीं जानता तो अपनी बाधा मिटा नहीं सकता, आध्यात्मिक चेतना का विकास कर नहीं सकता। इसलिए कर्म को जानना ज़रूरी है। दूसरे शब्दों में, बंध को जानना ज़रूरी है। बंध या कर्म को जानना ही पर्याप्त नहीं है । उसके हेतु को जाने बिना कुछ नहीं होता। यदि कर्म या बंध के हेतु को नहीं जाना जाता तो कर्म या बंध को समाप्त नहीं किया जा सकता। कर्म का बीज है-राग-द्वेष । जब तक राग और द्वेष को नहीं जाना जाता, तब तक राग और द्वेष से होने वाले -जीव के परिणामों को, जीव की विविध परिणतियों को नहीं जाना जा सकता। कर्म की चिकित्सा नहीं हो सकती। इसलिए कर्म को जानना जरूरी है, कर्म-बीज को जानना भी ज़रूरी है। दोनों को जान लिया किन्तु यदि कर्म-मुक्ति और कर्म-मुक्ति के हेतु को नहीं जाना तो कर्म की चिकित्सा नहीं हो सकती।। कर्म-मुक्ति का हेतु है-संवर और निर्जरा। जब ध्यान के द्वारा संवर (निरोध) की स्थिति उपलब्ध होती है और तपस्या के द्वारा निर्जरा हो जाती है, तब कर्म की ठीक चिकित्सा होती है । इसलिए कुशल साधक को कर्म, कर्म के हेतु, कर्म-मुक्ति और कर्म-मुक्ति के हेतु-इन चारों को जानना बहुत आवश्यक है। इनको जाने बिना वह अपनी साधना में विकास नहीं कर सकता। हमारे आवेग कर्मों का आस्रव निरंतर करते रहते हैं, कर्मों के आने के द्वारों को खोलते रहते हैं। उन द्वारों को कैसे बंद किया जाये ? आवेगों को कैसे शान्त किया जाये ? यदि मोह के आवेग शान्त होते हैं, मोह की आवत्तियां शान्त होती हैं, कम होती हैं तो कर्मों का दबाव अपने आप कम होने लग जाता है। साधक के सामने यह ज्वलन्त प्रश्न है कि उन आवेगों को, मोह की आवृत्तियों को शान्त कैसे किया जाये ? आवेगों को शान्त करने का प्रश्न केवल साधकों के सामने ही नहीं है किन्तु चिकित्सकों के सामने भी है । क्योंकि आवेगों को शान्त किये बिना जीवन भी स्वस्थ नहीं चल सकता। आवेग बुरी आदतों के उत्पादक हैं। स्वस्थ जीवन के लिए उन्हें शान्त करना आवश्यक होता है । चिकित्सकों ने भी अपनी सीमा में आवेग-शान्ति के उपाय खोजे हैं। जितने आवेग हैं, उन सबके केन्द्र हमारे मस्तिष्क में हैं। जिनके माध्यम से ये आवेग अभिव्यक्त होते हैं, वे सब केन्द्र हमारे मस्तिष्क में हैं। उन केन्द्रों को समाप्त करने से आवेग शान्त हो जाते हैं। क्रोध का एक केन्द्र है, एक बिन्दु है । उस बिन्दु को समाप्त कर देने पर क्रोध आना बंद हो जाता है। मद्रास में 'ब्रेन इन्स्टीट्यूट' है। यह भारत का बहुत बड़ा केन्द्र है। यहां के डॉक्टरों ने कुछ आपरेशन किये। उन्होंने कुछ खोजें की। उन्होंने बताया कि मदिरा पीने की आदत आपरेशन के द्वारा छड़ाई जा सकती है। मस्तिष्क में एक केन्द्र है, जो मादक वस्तुओं के प्रति आकृष्ट होता है। उसकी उत्तेजना को समाप्त आवेग-चिकित्सा : १६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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