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________________ उप-आवेग क्रोध, मान, माया और लोभ जैसे तीव्र नहीं हैं। इनमें भी बहुत तारतम्य है। यह मोह-परिवार ही हमारी दृष्टि को प्रभावित करता है, हमारे चारित्र को प्रभावित करता है। जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि। जैसा दृष्टिकोण, वैसा आचार । आचार का और दृष्टिकोण का गहरा संबंध है। दृष्टिकोण विकृत होता है तो आचार विकृत होता है । दृष्टिकोण सम्यक् होता है तो आचार सम्यक् होता है। उसके सम्यक् होने की अधिक संभावना होती है। ऐसा तो नहीं है कि दृष्टिकोण के सम्यक् होने के साथ ही साथ सारा-का-सारा आचार सम्यक हो जाए। आचार का क्रमिक विकास होता है। पहले दृष्टिकोण सम्यक् होगा, फिर आचार सम्यक् होगा। ___ जो भौतिक जीवन जीना पसंद करते हैं, वे केवल बौद्धिक विकास की चिंता करते हैं और वे बौद्धिक विकास को ही सर्वोपरि मानते हैं। जो आध्यात्मिक जीवन जीना पसंद करते हैं, वे आध्यात्मिक चेतना के विकास की चिता करते हैं। वे बौद्धिक विकास को आवश्यक मानते हुए भी उसे सर्वोपरि नहीं मानते। जब तक आध्यात्मिक चेतना का विकास नहीं हो जाता, तब तक जीवन का परम साध्य उपलब्ध नहीं होता, उसे प्राप्त नहीं किया जा सकता। ___ हम देखते हैं, कुछ बड़े-बड़े विद्वान् हैं पर वे बहुत ही अशान्त हैं। वे प्रताड़ित और धधकता हुआ-सा जीवन जीते हैं। वे ज्ञानी हैं । ज्ञान होने पर भी उनका मन शान्त नहीं है, उनके पास समस्याओं का समाधान नहीं है। यह क्यों ? इसका एकमात्र हेतु है कि उनमें विद्या का विकास तो हो गया, किंतु आध्यात्मिक चेतना का विकास नहीं हुआ। उनमें केवल बौद्धिक चेतना विकसित है। जब केवल बौद्धिक चेतना का विकास होता है और आध्यात्मिक चेतना का विकास नहीं होता तो समझ लेना चाहिए वह जीवन के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है। यह संकट का और भय का सबसे बड़ा बिंदु है। बौद्धिक चेतना के विकास का संबंध है मस्तिष्क से । मस्तिष्क की शक्तियां प्रखर होती हैं, तब बौद्धिक क्षमताएं जाग जाती हैं। कर्मशास्त्र की भाषा में बौद्धिकता का विकास ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम से होता है। ज्ञान का आवरण जितना हटता है, उतनी ही बौद्धिक क्षमताएं विकसित होती हैं। आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है मोह कर्म के विलय से। कर्मशास्त्र की भाषा में कहा जाता है कि जब मोह कर्म उपशान्त होता है, क्षीण होता है, तब आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है । आध्यात्मिक विकास की पूरी गाथा मोह के विलय से जुड़ी हुई है। मोह प्रबल है तो आध्यात्मिक चेतना का विकास नहीं हो सकता, चाहे फिर वह कितना ही बड़ा विद्वान् बन जाये, वैज्ञानिक बन जाये या और कुछ बन जाये। बड़े-बड़े बौद्धिक लोग भी आत्महत्या कर अपनी प्रखर बौद्धिक जीवन-लीला १५६ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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