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आवेग : उप-आवेग
• आवेग और उप - आवेग ।
• आवेग की चार स्थितियां - तीव्रतम, तीव्रतर मंद और मंदतर |
• चारों अवस्थाओं के क्षय से वीतरागता की प्राप्ति । दो मार्ग
पहला है मोह की प्रबलता का - आध्यात्मिक चेतना मूच्छित । दूसरा है मोह के विलय का - आध्यात्मिक चेतना विकसित ।
मानसशास्त्र के अनुसार आवेग छह हैं--भय, क्रोध, हर्ष, शोक, प्रेम और घृणा 1 आवेगों का जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव है । सारे मानवीय आचरणों का व्याख्या आवेगों के आधार पर की जाती है। किस प्रकार के आवेग में किस प्रकार की स्थिति बनती है, यह स्पष्ट है । एक व्यक्ति का मुक्का उठा और हमने समझ लिया कि वह गुस्से में है । आवेग के आते ही एक प्रकार की स्थिति बनती है, अनुभूति होती है । उसका प्रभाव स्नायु तंत्र पर पड़ता है, पेशियों पर होता है । एक प्रकार की उत्तेजना पैदा हो जाती है । उत्तेजना के अनुरूप सक्रियता आ जाती है । पेशियां उसी के अनुसार काम करने लग जाती हैं। आवेग का प्रभाव हमारे स्नायु तंत्र पर पेशियों पर रक्त पर और रक्त के प्रवाह पर, फेफड़ों पर, हृदय की गति पर श्वास पर और ग्रंथियों पर होता है ।
भय का आवेग आते ही स्नायविक तरंग उठती है । वह मस्तिष्क तक उस
१५४ : चेतना का ऊर्ध्वारोहण
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