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है। उसे तोड़ा नहीं जा सकता। चलने की भी एक व्यवस्था है। वह भी स्वाभाविक है। जीवन भर एक स्थान पर बैठा नहीं रहा जा सकता। ध्यानकाल में एक स्थान पर बैठ सकते हैं, किन्तु पूरे दिन तक तो ध्यान नहीं किया जा सकता । कायोत्सर्गकाल में कुछ समय तक स्थिर रहा जा सकता है। किन्तु जीवन से मृत्यु-पर्यन्त ऐसा नहीं हो सकता । प्रवृत्ति को छोड़ा नहीं जा सकता। चिन्तन भी एक प्रवृत्ति है। उसे भी रोका नहीं जा सकता। यह ठीक है कि ध्यानकाल में हम निर्विकल्प रह सकते हैं, निर्विचार रह सकते हैं, एक ही विचार पर एकाग्र रह सकते हैं, दूसरे विचार को रोक सकत हैं, किन्तु यह सदा-सर्वदा के लिए नहीं हो सकता। क्या चिन्तन के बिना काम चल सकता है ? चल नहीं सकता। चिन्तन जरूरी है, गति ज़रूरी है, क्रिया ज़रूरी है। शरीर की, मन की और वाणी की प्रवृत्ति को रोका नहीं जा सकता। ____ जब हम कर्म की बात कर रहे हैं तो हमें सूक्ष्म जगत् तक पहुंचना है। प्रवृत्ति और निवृत्ति-दोनों के पीछे एक तत्त्व है। उस तक पहुंचने का हम अभ्यास करें। यही वास्तव में साधना है, यही उसकी सार्थकता है।
प्रवृत्ति और निवृत्ति आसक्ति और अनासक्ति से जुड़ी होती है । हम यह अभ्यास करें कि प्रवृत्ति के प्रति आसक्ति न हो या कम हो। प्रवृत्ति हो किन्तु उसके पीछे आसक्ति का, राग-द्वेष का भाव कम हो। प्रवृत्ति के साथ समभाव की धारा जड़ जाये। फिर चाहे आप प्रवृत्ति करें किन्तु उस प्रवृत्ति के पीछे एक प्रहरी खड़ा मिलेगा और वह आपको सतर्क करता रहेगा। जैसे ही आपने प्रवृत्ति में दोष लाना प्रारम्भ किया, तत्काल कानों में एक ध्वनि गूंज उठेगी-समभाव, तटस्थता, सामायिक, समता । तब आपकी प्रवृत्ति में आने वाला जो दोष है वह अपने आप नीचे उतर जायेगा, दूर हट जायेगा। प्रवृत्ति के दोषों का प्रक्षालन करने के लिए, उसके दोषों का संशोधन और परिमार्जन करने के लिए हमें जिस बात का अभ्यास करना है वह है समभाव का अभ्यास, समता का अभ्यास, सामायिक का अभ्यास। मनोविज्ञान की भाषा में इसे मार्गान्तरीकरण और उदात्तीकरण कहा गया है।
प्रवृत्ति का शमन होता है, विलयन होता है, मार्गान्तरीकरण होता है, उदात्तीकरण होता है। ये चार बातें हैं। पहली बात है शमन की। जो प्रवृत्ति समाज-सम्मत नहीं है, व्यक्ति उसे करना चाहता है, किन्तु सामाजिक प्राणी उस प्रवृत्ति को नहीं करता, उसका शमन करता है। वह अपनी इच्छा को रोक देता है। हर इच्छा की पूर्ति नहीं होती। कोई भी व्यक्ति अपनी प्रत्येक इच्छा को पूरी नहीं कर सकता। कुछ पूरी होती हैं, कुछ अधूरी रह जाती हैं, कुछ को छोड़ देना होता है। रास्ते चलते सुंदर मकान दिखायी दिया । इच्छा हुई कि उस पर कब्जा कर लूं । कब्ज़ा कैसे कर सकता है ? नहीं कर सकता। क्योंकि सामाजिक व्यवस्था
कर्म की रासायनिक प्रक्रिया (२) : १२६
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