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है प्रोटीन की तो भोजन में जो प्रोटीन का भाग होता है वह प्रोटीन की पूर्ति कर देता है। चिकनाई की ज़रूरत होती है वह स्निग्ध पदार्थों से पूरी हो जाती है। श्वेतक्षार की ज़रूरत है वह श्वेतक्षार वाले द्रव्यों से पूरी हो जाती है। जिन तत्त्वों की, विटामिनों की जरूरत होती है, वे विटामिन भोजन के माध्यम से पहुंचते हैं और अपना काम प्रारंभ कर देते हैं। बहुत बार अजीब-सा लगता है कि बीमारी है शरीर के किसी हिस्से में, पेट में दवा लेते हैं और वह बीमार हिस्सा स्वस्थ हो जाता है । अंगूठे में दर्द है तो वह दवा अंगूठे में ही लाभ करेगी। वहां वह पहुंच जायेगी। छोटी-सी गोली दी। सिर में दर्द है, अंगूठे में दर्द है, पीठ में दर्द है, तो जहां दर्द है वहीं उस दवा की किया होगी और वह बीमार अवयव स्वस्थ हो जायेगा। प्रश्न होता है कि वह दवा बीमार अवयव तक ही क्यों पहुंचती है ? दूसरे अवयव तक क्यों नहीं पहुंचती ? आंख में दर्द है तो दवा अंगूठे तक क्यों नहीं पहुंचती? समाधान है कि शरीर में स्वाभाविक व्यवस्था है। जिस अवयव में जिस तत्त्व की कमी है, पदार्थ उस कमी को पहले पूरी करेगा। जिस तत्त्व की जहां कमी है, वह तत्त्व उसी दिशा में स्वत: आकृष्ट हो जायेगा। वह वहीं जायेगा। जिन सेलों में, शरीर के जिन अवयवों में प्रोटीन की कमी है, हम प्रोटीन का भोजन लेते हैं तो वह प्रोटीन उन्हीं सेलों, उन्हीं अवयवों की ओर आकृष्ट होगा। क्योंकि शरीर में आकर्षण की एक व्यवस्था है। हमारे शरीर में ही नहीं, सारे संसार में आकर्षण और विकर्षण की एक ऐसी व्यवस्था है कि अपनीअपनी अनुकूलता, अपनी-अपनी सजातीयता के प्रति सब की गति होती है । सजातीय उसे टान लेता है।
हमारे कर्म परमाणुओं की भी यही व्यवस्था है। जो परमाणु गृहीत होते हैं वे अपने-अपने सजातीय परमाणुओं के द्वारा खींच लिये जाते हैं और उसी दिशा में वे सक्रिय हो जाते हैं। वे अपना काम करने लग जाते हैं। उनमें फल की शक्ति भी हो जाती है। ये परमाणु इस प्रकार का फल देने में समर्थ हैं, फल देने की व्यवस्था होती है। ___आंख की ज्योति कम होती है तब डॉक्टर कहता है कि विटामिन 'ए' का अधिक मात्रा में सेवन करो। यह बात स्पष्ट है कि विटामिन 'ए' में आंख की ज्योति को सहारा देने की क्षमता है। चर्म-रोग होता है तो डॉक्टर विटामिन 'ए' की बात नहीं कहता। वह कहता है-विटामिन 'डी' का सेवन करो। विटामिन 'डी' में यह शक्ति है कि वह चर्म रोगों का निवारण कर सकती है। विटामिन 'ए' या 'डी' की परिणति का कोई नियामक या नियंता नहीं है । औषधि के सेवन के पश्चात् मनचाहा परिणाम लाना डॉक्टर के हाथ की बात नहीं है। वह परिणाम स्वतः उद्भूत होता है।
विश्व के प्रत्येक पदार्थ में, सब परमाणुओं में अपने-अपने प्रकार की एक
कर्म की रासायनिक प्रक्रिया (२) : १२७
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