SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कुछ पानी के ऊपर । सहसा मेरे मन में विकल्प उठा कि यह क्यों ? क्या वे लौंग नहीं हैं जो नीचे पड़ी हैं या जो ऊपर हैं वे लौंग नहीं हैं ? या जब दोनों ही लौंग हैं तो फिर कुछ ऊपर, कुछ नीचे-ऐसा क्यों ? मैंने दो क्षण सोचा। समझ में नहीं आया। फिर देखा । बहुत ध्यान से देखा तो तत्काल एक बात मेरे ध्यान में आ गयी। जितनी लौंग पानी के ऊपर थीं, वे टोपी वाली साबुत लौंग थी, लेकिन जो पानी में डूबी हुई थीं, ये वे लौंग थीं, जिनकी टोपी उतर गयी थी और फूल उतर गया था। तत्काल मैंने समझा, यह जो टोपी है लौंग को ऊंचा रखती है और तराती है। जिनकी टोपी उतर गयी, हल्कापन उतर गया, भारीपन आ गया, वे नीचे डूब जाती हैं। शायद आप लोगों ने भी देखा हो और न देखा हो तो देख सकते हैं। चाहे जब देख सकते हैं । चार लौंग हाथ में लीजिए । दो की टोपी उतारकर पानी में डालिये और दो को टोपी सहित डालिए। जिनकी टोपी उतर गयी है, नीचे चली जाएंगी और जिन पर टोपी है, वे ऊपर रह जाएंगी। यह हल्कापन और भारीपन केवल लौंग को ही नहीं डुबाता और ऊंचा रखता; आदमी को भी डुबाता और ऊंचा रखता है। सचमुच ऊपर जाने का जो रास्ता है, वह हल्का होता है। नीचे जाने का जो रास्ता है, वह भारी होता है। जयन्ती ने भगवान महावीर से पूछा, "भन्ते ! प्रशस्त क्या है और अप्रशस्त क्या है ? स्मरणीय क्या है और निन्दनीय क्या है ? उपादेय क्या है और हेय क्या है ?" भगवान ने कहा, बहुत संक्षेप में कहा-"यह जो भारीपन है अप्रशस्त है और हल्कापन है, यह प्रशस्त है । लाघव प्रशस्त है और गुरुत्व अप्रशस्त है।" फिर पूछा कि भन्ते ! यह जीव भारी कैसे होता है और हल्का कैसे होता है ? भगवान ने कहा, शास्त्रीय भाषा में कहा किन्तु मैं उसका अनुवाद कर आपको कहंगा। भगवान ने उत्तर दिया कि जिसकी आंखों में परमात्मा झांकता है वह हल्का होता है और जिसकी आंखों में शैतान झांकता है, वह भारी होता है। परमात्मा क्या है और शैतान क्या है ? हमारे अस्तित्व की जो अनुभूति है, वह परमात्मा है। अहं की जो अनुभूति है, वह शैतान है। जो व्यक्ति अस्तित्व की अनुभूति के धरातल पर चला जाता है, वहां परमात्मा आंखों से झांकने लग जाता है और जिस व्यक्ति की आंखों से अहंकार और ममकार का शैतान झांकता है, वह भारी बन जाता है। एक पुरानी घटना है । एक व्यक्ति ने सोचा कि मैं चित्र बनाऊं और उस व्यक्ति का चित्र बनाऊं जिसकी आंखों में परमात्मा झांकता हो या जिसकी आंखों में परमात्मा का प्रतिबिम्ब हो । वह घूमा। काफ़ी घूमा। हजारों-हजारों लोगों को देखा। स्त्रियों को देखा। पुरुषों को देखा। बड़े-बड़े विज्ञ लोगों को देखा। धनिकों को देखा । कहीं भी परमात्मा झांकता हुआ नहीं मिला। आखिर में वह २ : चेतना का ऊर्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy