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________________ १ चेतना का जागरण • अस्तित्व और प्राण का संगम है - जीवन । • अस्तित्व और प्राण के पृथक्त्व का बोध है - विवेक । • यही चेतना के जागरण का प्रथम बिन्दु है । बहुत सारे लोगों की धारणा है कि जैनों में साधना-पद्धति व्यवस्थित नहीं है या योग नहीं है । यह केवल अजैन लोगों में ही नहीं, जैन-दर्शन के बड़े-बड़े विद्वानों में भी धारणा है और मुझे लगता है कि वह बहुत ही भ्रांत है । इसलिए इस श्रृंखला में मैं मुख्यत: जैन साधना पद्धति या जैन योग पर ही या उसके आधार पर ही कुछ बातें प्रस्तुत करूं । वैसे तो योग ऐसा विषय है जिसमें जैन-अजैन आदि का कोई भेद नहीं किया जा सकता किन्तु फिर भी अपने ढंग का प्रतिपादन और अपनी शैली से कुछ बातों का निरूपण जो होता है, इस आधार पर 'कुछ बातें रखूंगा। इस श्रृंखला में आज का पहला विषय है, 'चेतना का जागरण' । क्योंकि जब तक यह हमारी समझ में नहीं आयेगा कि योग या साधना पद्धति का आचरण क्यों करना है तब तक हम उसके लिए तत्पर नहीं होंगे या करने की प्रबल भावना ही जागृत नहीं होगी कि हम क्यों करें ? इसलिए हमें यह समझ लेना है कि चेतना का जागरण किए बिना हमारे जीवन की सार्थकता नहीं है और जो हम पाना चाहते हैं, पा नहीं सकते । इसलिए आज का पहला विषय हमारा यही है । एक दिन मैं पानी पीने के लिए बैठा था । सामने पात्र था। मैंने देखा कि उस पात्र में कुछ लौंग पड़ी हैं। शायद पांच-सात होंगी। कुछ नीचे तल पर थीं और चेतना का जागरण : १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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