SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यवस्था करती है। यदि सर्वशक्ति-सम्पन्न सत्ता हो, सब कुछ करने में समर्थ हो, फिर भी वह इस प्रकार की व्यवस्था न करे कि उसके शासन-काल में, उसके साम्राज्य में, विराट् साम्राज्य में और विश्वव्यापी साम्राज्य में जिसका कोई अतिक्रमण नहीं कर सकता, अपराध भी चले, अन्याय भी चले, क्रूरता भी चले, शोषण भी चले, दमन भी चले और वह सब कुछ चले जो कि मानवीय सत्ता में चलता है तो फिर यह बहुत चिंतनीय प्रश्न बन जाता है। ___ बादशाह ने बीरबल से पूछा--"बताओ! मेरे में और खुदा में क्या अंतर है ?" बीरबल ने कहा-“जहांपनाह ! अंतर बहुत बड़ा है। आप जब मुझसे नाराज़ होते हैं तो अपनी सल्तनत से मुझे निकाल देते हैं, देश से मुझे निर्वासित कर देते हैं। किंतु खुदा एक ऐसी हस्ती है जो किसी को अपने देश से नहीं निकालती।" खुदा यदि देश-निकाला दे तो कौन कहां जाये ? जबकि हम यह मान लेते हैं कि ईश्वर की सत्ता सर्वव्यापी है । इस जगत् का एक कण भी ऐसा नहीं है जहां ईश्वर की सत्ता न हो और यदि वही देश निकाला दे दे तो भला कहां जायें ? कृष्ण ने पांडवों से कहा- "मेरे राज्य से चले जाओ।" युधिष्ठिर आये और बोले-'प्रभो! आप यदि और कुछ आदेश देते तो वह हम सहर्ष मान्य कर लेते, किंतु आपके राज्य से चले जाने की बात कैसे संभव हो सकती है ? आपका राज्य सर्वत्र व्याप्त है । आप हमें बताएं कि हम जायें कहां? हमें स्थान का निर्देश दे दें।" युधिष्ठिर ने बहुत अनुरोध किया। तब कृष्ण ने कहा- दक्षिण में चले जाओ। पांडु मथुरा में जाकर बस जाओ।" स्थान का निर्देश किया। वे उत्तर से दक्षिण में आ गये। यह तो संभव था। किंतु राज्य से चले जाओ, यह कैसे संभव हो सकता था। वासुदेव कृष्ण का राज्य बहुत बड़ा था, सर्वत्र था। फिर आदमी जाये तो कहां जाये ? ईश्वरीय सत्ता का भी बहुत बड़ा प्रश्न है। उसकी सत्ता में वह सब कुछ चलता रहे जो मानवीय सत्ता में चलता है तो सर्व-शक्ति-सम्पन्नता का कथन अयथार्थ हो जाता है। इस प्रश्न का समाधान बहुत जटिल है। मैं यह नहीं कहता कि इस प्रश्न को समाहित करने का प्रयत्न नहीं किया गया। प्रयत्न किया गया। समाधान दिया गया। किंतु वह समाधान भी असमाधानकारक बन गया। जो समाधान प्रश्न को समाहित करने चला था, उसने अनेक नये-नये प्रश्न खड़े कर दिये । वह वास्तव में समाधानकारक नहीं बना। प्रश्न बना का बना रह गया। डॉक्टर रोगी को स्वस्थ बनाने वाला है और वही यदि रोगी को और अधिक बीमार बनाता चला जाये, उस डॉक्टर को हम बहुत सम्मान नहीं दे सकते। मनुष्य को रोगी बनाने वाला यदि कोई विराट् शक्ति-संपन्न अस्तित्व हो तो यह समझ में आने वाली बात नहीं है। जब कर्तत्व की बात फल देने की बात से कर्म की रासायनिक प्रक्रिया (२) : १२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy