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________________ पांचवें आयाम की बात भी बहुत स्पष्ट थी। उसमें चौथा आयाम है-अदृश्य और गांचवां आयाम है-अमूर्त । एक तत्त्व ऐसा भी है जिसकी कोई लंबाई नहीं, चौड़ाई नहीं और ऊंचाई भी नहीं। वह किसी भी उपकरण के द्वारा दृश्य नहीं है। सूक्ष्मतम उपकरण भी उसे नहीं पकड़ पाते, देख नहीं पाते। उसे हम अदृश्य इसलिए कहते हैं कि वह हमारे चर्म-चक्षुओं द्वारा दृश्य नहीं है । वह दृश्य है अतीद्रिय शक्तियों के द्वारा। ___ पांचवां आयाम है-अमूर्त । वह वर्ण, रस, गंध और स्पर्श से अतीत है। इस अमर्त के साथ कर्म का संबंध है, इसलिए हमें पांचवें आयाम तक यात्रा करनी पड़ेगी। __पहले चौथे आयाम की यात्रा पर चलें। हमारे शरीर में जो ग्रंथियों के स्राव हैं, उनका कार्य हमारे स्थूल शरीर में ही होता है। उनका पूरा संबंध स्थूल शरीर से ही है। से ग्रंथियां स्थूल शरीर के अवयव हैं। इनसे स्थूल शरीर और मन प्रभावित होता है। कर्म का संबंध स्थूल-शरीर से नहीं है। उसका संबंध है सक्ष्म शरीर से। कर्म के पुद्गल बहुत सूक्ष्म हैं। ये ग्रंथियों के स्राव अष्टस्पर्शी-आठ स्पर्श वाले हैं। वे आठ स्पर्श हैं-शीत, उष्ण, स्निग्ध, रूक्ष, गुरु, लघु, मृदु और कठोर। कर्म के पुद्गल सूक्ष्म हैं। वे चार स्पर्श वाले हैं। वे चार स्पर्श हैं-शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष । प्रत्येक परमाणु कर्म नहीं बन सकता। वे ही परमाणु कर्म बन सकते हैं जो सूक्ष्म होते हैं, जिनमें केवल चार ही स्पर्श होते हैं, जो केवल चतु:स्पर्शी होते हैं। स्थूल परमाणु कर्म नहीं बन सकते। स्थूल परमाणुओं में कर्म बनने की और उस अमूर्त की शक्तियों को आवृत करने की क्षमता नहीं है। किंतु उन सूक्ष्म परमाणुओं में वह शक्ति है, जिनमें केवल चार स्पर्श ही होते हैं। हमारी ग्रंथियों के जितने स्राव हैं, उनमें आठों स्पर्श हैं। किंतु जो कर्म के पुद्गल हैं, वे चार स्पर्श वाले ही होंगे। इस प्रकार पुद्गलों के दो वर्ग हो गये-एक चतुःस्पर्शी पुद्गलों का वर्ग और दूसरा अष्टस्पर्शी पुद्गलों का वर्ग। चतु:स्पर्शी पुद्गल सूक्ष्म हैं। वे किसी भी सूक्ष्मतम उपकरण के द्वारा अदृश्य हैं। आज अनेक ऐसे सूक्ष्म उपकरण आविष्कृत हुए हैं, जिनके द्वारा चर्म चक्षुओं से नहीं दीखने वाले पदार्थ भी देखे जा सकते हैं। किंतु कर्म पद्गल, कर्म के परमाणु इतने सूक्ष्म हैं कि वे किसी भी उपकरण के द्वारा नहीं देखे जा सकते । वे किसी भी उपकरण के द्वारा ग्राह्य नहीं हो सकते । इस भाषा में उन्हें अदृश्य भी कहा जा सकता है। ___ यह सारी अदृश्य जगत् की चर्चा है। यह उस जगत् की चर्चा है, जो हमारी इंद्रियों का विषय नहीं है, जो हमारे द्वारा आविष्कृत उपकरणों का विषय नहीं है। उसे जानने के लिए विशिष्ट अतीदिय ज्ञान चाहिए। वैज्ञानिकों ने आज ऐसे उपकरण बनाये हैं जिनके माध्यम से मृत्यु के समय १०४ : चेतना का ऊर्वारोहण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003090
Book TitleChetna ka Urdhvarohana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1978
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size10 MB
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