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ही हो सकता है। फोड़ा पक गया, अब तो वह फूटेगा ही।
आज विकास का युग है। आज चिकित्सा की ऐसी शाखा उद्घाटित हो गयी है जो सूक्ष्म फोटोग्राफी के आधार पर, भविष्य में होने वाली बीमारी का पहले ही चित्रांकन कर लेती है। छह महीने बाद, वर्ष या दो वर्ष बाद कौन-सी बीमारी होने वाली है, यह पता चल जाता है। पहले से ही उसकी चिकित्सा कर ली जायेगी, जिससे कि वह शरीर में हो ही नहीं । बहुत अद्भुत बात है।
प्राचीनकाल में भी यह विद्या ज्ञात थी। पहले से ही बीमारी जान ली जाती और उसके न होने की स्थिति पैदा कर दी जाती। यह पद्धति थी कर्मशास्त्र की। कर्म के विपाक को जान लिया जाता और वह न हो, इसकी व्यवस्था पहले से ही कर ली जाती। ___ हमें केवल वर्तमान को ही नहीं देखना है। ध्यान के लिए यह बताया जाता है कि वर्तमान को देखो, वर्तमान के क्षण को देखो, यह भी एक बात है, किन्तु पूरी बात नहीं। वर्तमान को देखना-यह अच्छा है। मन को शांत करने के लिए बहुत ज़रूरी है वर्तमान को देखना। किन्तु तथ्यों की समग्र जानकारी के लिए केवल वर्तमान ही पर्याप्त नहीं होता, अतीत को भी देखना ज़रूरी होता है। जिस अतीत का परिणाम वर्तमान बनता है, जिस अतीत का विपाक वर्तमान बनता है, उस अतीत को समझना भी आवश्यक है। अतीत को समझे बिना वर्तमान के विपाक को, वर्तमान की प्रवृत्ति को, वर्तमान की रचना को नहीं समझा जा सकता। उसको समझने का कोई लाभ भी नहीं है। जो वर्तमान का क्षण है, उसकी पहले की संपत्ति को समझना, यह है कर्मशास्त्र को समझ लेना। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जो अनादि और अनन्त हैं। उनका न आदि है और न अन्त। हमारा अस्तित्व जो है, उसका आदि भी नहीं है और अन्त भी नहीं है। कुछ तथ्य ऐसे होते हैं जो अनादि हैं और सान्त हैं । उनका आदि नहीं है, किन्तु उनका अन्त अवश्य है। उनके प्रारंभ का, आदि का हमें पता नहीं है किन्तु वे एक दिन समाप्त अवश्य होंगे।
__ अंधकार कब से है, इसका कोई पता नहीं। जब भी दीया जलाया, बिजली जलायी, वह समाप्त हो गया। अंधकार समाप्त होता रहता है। ऐसा भी क्षेत्र मिल जाये जहां आज तक भी सूर्य की रश्मियां नहीं पहुंची है; कोई आदमी नहीं पहुंचा है, वहां सदा अंधकार ही रहा है। वहां भी कोई आदमी जाये, दीया जलाये, बिजली जलाये, तो अंधकार समाप्त हो जाता है। अंधकार अनादि है किन्तु वह सान्त है, उसका अन्त होता है, वह समाप्त होता है।
जिस व्यक्ति को कभी सम्यगदष्टि प्राप्त नहीं हुई, जिस व्यक्ति ने कभी संबोधि का अनुभव नहीं किया, जिसकी अविद्या का आवरण कभी समाप्त नहीं हुआ, आज तक नहीं हुआ, किन्तु ऐसा कोई योग मिला कि मिथ्यादृष्टि विलीन हो गयी, मिथ्यादर्शन समाप्त हो गया, अबोधि मिट गयी, अविद्या का आवरण टूट
आचरण का स्रोत : ६५
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