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आत्म-राज्य के अधीश्वर
१ गुरु स्वयं में एक धर्म, चेतना के एकीकरण के अभिकर्ता तथा
शरीर, मन और आत्मा के राज्य के अधीश्वर होते हैं। २ सच्चा गुरु वह है जो समय-समय पर आध्यात्मिक शक्ति के
भण्डार के रूप में अवतीर्ण होता है और गुरु-शिष्य परंपरा द्वारा उस शक्ति को अगली पीढ़ी के लोगों में संचरित करता
३ सदगुरु-जो श्रुति के ज्ञान से युक्त हों, पाप रहित हों, कामना
शून्य हों, श्रेष्ठ ब्रह्म-वेत्ता हों, ब्रह्मनिष्ठ हों, ईंधन रहित अग्नि
के समान शान्त हों। ४ चारित्र की उत्कृष्टता, व्यक्तित्व की प्रभावोत्पादकता आचरण में शील तथा व्यवहार में उदारता गुरु-अनुग्रह की वास्तविक
उपलब्धि है। ५ जो स्वयं देवता नहीं होता, वह देवता की पूजा नहीं कर
सकता। ६ परमात्मा वही बन सकता है जो परमात्मा को देखता है,
उसका मनन करता है, उसका चिन्तन करता है और उसमें तन्मय रहता है। ७ धरती के देवता वे हैं जो अपने अनुकरणीय आचरण से दूसरों
में सत्पथ-गमन की प्रेरणा भर देते हैं। ८ सारा संसार स्त्री और काञ्चन के चक्र में घूम रहा है। जो
व्यक्ति इनसे विरक्त रहता है, वह दूसरा परमेश्वर है । है जिस व्यक्ति को परमात्मा उपलब्ध हो गया, आत्म-जागरण
उपलब्ध हो गया, उसे सब कुछ उपलब्ध हो गया। १० निष्कषाय, शुद्ध, चैतन्य-योगमय आत्मा ही समाधि, निर्वाण
और शान्ति है। ११ मन-मन्दिर के उजड़ जाने पर, इन्द्रिय वातायनों के बंद हो
जाने पर और शुद्ध स्वभाव के प्रकट होने पर यह आत्मा ही परम आत्मा बन जाती है।
आत्म-राज्य के अधिकार
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