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उसे पाने का दृढ़ निश्चय करो और अपनी चित्तधारा को उसी में नियोजित कर दो । निश्चित ही तुम एक दिन वैसे बन जाओगे ।
११ संकल्प सिद्धि के लिए सतत् - जागरूक प्रयत्न अपेक्षित है । क्योंकि लापरवाही आत्मा का वह जंग है जो दृढ़ से दृढ़ संकल्प को भी क्षार-क्षार कर देता है ।
१२ जिसकी दिनचर्या, निशाचर्या और ऋतुचर्या सम्यक्, नियमित और व्यवस्थित होती है वह सामान्यतः बीमार नहीं हो सकता है और जिनकी चर्या संयमित व्यवस्थित नहीं होती, उसे अस्वस्थ होने से कोई बचा भी नहीं सकता ।
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योगक्षेम-सूत्र
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