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________________ आंसू रोको मत १ जिस समय घुटन, दु:ख, विषाद आदि रोग पैदा हों, उस समय उनके विष को रोकर बाहर निकाल दीजिए ताकि उनसे संबंधित रोग पैदा न हों। २ दरअसल अगर हमें ठीक से आंसू बहाना आ जाए तो शायद हम अपनी कुछ दवाइयों को फेंक डालें। चार्ल्स डिकेंस के अनुसार--"रोने से फेफड़े खुल जाते हैं, मुंह धुल जाता है, आंखों की कसरत हो जाती है और मिजाज ठीक हो जाता है सो रोना आए तो रोको मत ।” ३ डा० फेके का कहना है--- "रोने से मन का सारा मैल धुल जाता है, आत्मा पवित्र हो उठती है।" ४ भावनात्मक आंसू उदासी, अवसाद और गुस्से से मुक्त होने के योग्य बनाते हैं। ५ असफलता, असंतोष, आघात किसके जीवन में नहीं आते। उस समय प्रशान्त मनःस्थिति परिष्कृत व्यक्तित्व का चिह्न है। पर जब ऐसी स्थिति न हो, मनःक्षेत्र घटनाओं को ही गुनधुन रहा हो तो उपयुक्त यही है कि भीतर से उठ रही रूलाई को रोका न जाय। नकली बहादुरी के प्रदर्शन का प्रयत्न मन के भीतर की घुटन को तो हल्का करेगा नहीं, मस्तिष्क की क्रियाशीलता को अवश्य क्षति पहुंचाएगा। यदि फूट-फूटकर रो लिया गया हो या कि अपना दुःख खोलकर किसी विश्वस्त आत्मीय से विस्तारपूर्वक कह दिया गया हो तो स्वस्थता बनी रह सकती है । ६ वैज्ञानिक जेम्सवाट के अनुसार-"स्त्रियां अपने आंसू बहाने में कंजूसी नहीं करने के कारण ही घुटन से मुक्त रहती हैं और अधिक स्वस्थ एवं दीर्घजीवी रहती हैं जबकि पुरुष मांसू रोको मत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
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