SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गहराई विजय है, उथलाई हार है १ महानता अन्तस्तल में छिपी रहती है, क्षुद्रता सतह पर तैरती २ जितनी बड़ी चीज खोजनी हो उतने गहरे उतरना पड़ता ३ जीवन की सारी सम्पदा अन्तरतम स्थानों में छिपी होती ४ सदा स्वयं के भीतर गहरे से गहरे होने का प्रयास करते रहो। भीतर इतनी गहराई हो कि कोई तुम्हारी थाह न ले सके। अथाह जिसकी गहराई है, अगोचर उसकी ऊंचाई हो जाती है। ५ जहाज वहां नहीं रह सकते जहां पानी बहुत उथला हो । ६ किनारे पर जो बैठे हैं, वे पागल ही हैं। ७ जितने गहरे पानी में जाओ, उतने ही ज्यादा रत्न मिलते ८ गहरे उतरकर तुम अपनी खोज नहीं करते, इसीलिए तो उसे नहीं पा सकते। ६ जहां गहराई नहीं होती वहां तरने की बात नहीं होती। १० अपने आपको खरा रखो। अन्तर को टटोलो। देखो कि कहीं उसमें खोट तो छिपा हुआ नहीं है। चिनगारी छोटी होने पर भी अवसर पाकर प्रचण्ड ज्वालमान बन सकती है। अपनी ही कमियां चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को गहित बनाती है। प्रकाश की ओर पीठ करके चलने वाला मात्र अपनी काली परछाईं ही देखता है । आदर्शों से विमुख होकर कोई व्यक्ति न तो गरिमा अजित करता है और न ओछे उपायों से प्राप्त की गई ख्याति को बनाये रह सकता है । छद्म में देर तक पैर जमाये रहने की सामर्थ्य नहीं है। योगक्षेम-सूत्रः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy