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पाते हैं। तभी हम ईश्वरप्रदत्त अपनी शक्तियों को भी
पहचानते हैं। ६ मौन एवं एकान्तवास द्वारा अजित शक्ति लेकर हम लोक
कल्याण और मानव-सेवा के उच्चतर कार्य में लगें। १० बड़े-बड़े काम शांत और चुपचाप रहकर ही होते हैं।
बड़े-बड़े जंगल चुपचाप उगते हैं, जिस विशाल धरा-पृथ्वी पर चल फिर रहे हैं, वह चुपचाप अपनी धुरी पर गतिशील
रहती है। ११ जब मन बाह्य विचारों से शून्य होता है तब उस शून्यता
को चैतन्य की अनुभूति भर देती है। जब मन चैतन्य की अनुभूति से शून्य होता है तब उस शुन्यता को बाह्य विचार भर देते हैं।
खाली दिमाग शैतान का नहीं, भगवान् का घर होता है
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