SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सोचने की बात १ हमारा शरीर महाग्रंथ है जिसे हजारों-हजारों लोगों ने पढ़ा, हजारों बार पढ़ा पर उसका एक पृष्ठ भी समझ में नहीं आया और अब तक भी नहीं आया। महाग्रंथ, जिसकी हर पंक्ति पर अर्द्धविराम और पूर्ण विराम है, जिसकी यात्रा न जाने कितने लोगों ने की पर पहुंचना कठिन रहा। वह महाग्रंथ किसी महान् ग्रंथकार किसी महाकवि के द्वारा लिखा हुआ नहीं है, कितु एक प्रकृति प्रदत्त रचना है। २ जीवन ताश का खेल है, जिसमें पत्ते बंट जाने पर हर खिलाड़ी को वे पत्ते उठाने ही पड़ते हैं। फिर खिलाड़ी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह उन्हीं पत्तों से कितना अच्छा खेल खेल पाता है। जीवन की अधिकांश असफलताएं इसलिए पैदा होती हैं क्योंकि इंसान इस नियम को मानने से इंकार कर देता है और उन्हीं पत्तों से खेलने की जिद पकड़ लेता है जो उसके विचार से उसे मिलने चाहिए थे। ३ मनुष्य ने प्लास्टिक के सुंदर रंग-बिरंगे फूल बनाकर अपने गमले सजाने की कल्पना से मन को छलना तो सीख लिया पर उनमें सौरभ पैदा करने में आज तक असफल रहा है। जीवन के दुःख दर्दो पर कृत्रिम हास-परिहास व मनोरंजन के आकर्षक आवरण डालकर उन्हें भुलाने की कोशिश तो कर सका है पर उनमें आत्मतृप्ति की सुखद अनुभूति का स्पर्श नहीं जगा सका। ४ माता-पिता के लिए पुत्रों की कृतज्ञता, अपने बच्चों की कृतज्ञता से बढ़कर हर्षदायक कोई बात नहीं होती। और बेटा-बेटी उदासीन हैं, परवाह नहीं करते, अकृतज्ञ हैं-माता योगक्षेम-सूत्र १२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003089
Book TitleYogakshema Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Jain
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy