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अर्हत-वाणी
१ उठ्ठिए णो पमायए-उठो, प्रमाद मत करो। जाग गये हो,
अब मत करना कभी प्रमाद । २ खणं जाणाहि पंडिए-समय का मूल्य आंको। ३ णो हूवणमंति राइओ-बीती हुई रात लौट कर नहीं
आती। ४ अप्पणा सच्चमेसेज्जा-स्वयं सत्य की खोज करो। ५ सच्चं लोयम्मि सारभूयं-सत्य ही लोक में सार है । ६ सच्चम्मि धिई कुव्वहा–सत्य में अटल रहो। ७ सव्वेसि जीवियं पियं—सबको जीवन प्रिय है। ८ मेत्ति भएसु कप्पए-सबके साथ मैत्री करो। ६ णो हपाए णो पाराए-न घर का, न घाट का। १० मा य ह लालं पच्चासि-लार को मत चाटो। ११ णत्थि कालस्स णागमो-- मौत के लिए कोई अनवसर
नहीं। १२ सयं कडं नन्नकडं च दुक्खं जो दुःख है, वह अपना किया
हुआ है। १३ मा अप्पेणं लुपहा बहुं-थोड़े के लिए बहुत को मत
गंवाओ। १४ से केयणं अरिहइ पूरित्तए-आदमी चलनी को भरना चाहता
१५ नाति कंडूइयं सेयं-घाव को ज्यादा खुजलाना अच्छा
नहीं । १६ पढमं नाणं तओ दया-पहले जानो फिर करो। १७ निदं च न बहुमन्नेज्जा-नींद को बहुमान मत दो। अर्हत्-वाणी
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