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________________ श्रद्धा घनीभूत कैसे रहे ? १९९ तब जागती है जब विचार या दृष्टिकोण साफ होता है । यह एक तथ्य हैअनेकान्त को समझे बिना हमारी श्रद्धा कभी गहरी नहीं होगी। अनेकान्त से ही हमारी श्रद्धा गहरी और घनीभूत होती है। किसी ने गाली दी, कटु वचन कहा, वह एक कोण है। इसका मतलब यह नहीं है कि हम दूसरे कोणों को भुला दें। यह चिन्तन श्रद्धा को घनीभूत रखने का बहुत बड़ा सूत्र श्रद्धा अखण्ड रहे हम विचारों की दुनिया में न उलझे। एक विचार को समग्र या अखण्ड मानकर न चले । यदि हम विचार की चपेट में चले गए तो हमारी श्रद्धा बाधित हो जाएगी। यह विचार और श्रद्धा का द्वन्द्व है। हम विचारों से इतने प्रभावित न हो कि हमारी श्रद्धा खण्डित हो जाए। आगम का वचन है-जिस विचार और श्रद्धा के साथ अभिनिष्क्रमण किया है, उसका अनुपालन करना है । उसी विचार और श्रद्धा पर टिके रहना है। श्रद्धा अपने आप घनीभूत होती चली जाएगी'-- जाए सद्धाए निक्खंतो, परियायट्ठाणमुत्तमं ।' तमेव अणपालेज्जा, गुणे आयरिय सम्मए । इस स्वीकृत श्रद्धा को आधार मानकर जो व्यक्ति चलेगा, वह सचमुच सत्य के निकट पहुंचेगा और सत्य का दर्शन ही श्रद्धा को धनीभूत बना पाएगा। १. सवालियं ८६६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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