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________________ श्रद्धा घनीभूत कैसे रहे ? मनुष्य का मस्तिष्क भानुमति का पिटारा है। उसमें इतनी चीजें भरी हैं कि आदमी क्या-क्या करे। उसमें बुद्धि है, सोचने की क्षमता है, श्रद्धा का केन्द्र है, सत्य की खोज का प्रयत्न है । और भी बहुत कुछ भरा है मस्तिष्क में। प्रत्येक आदमी सफल होना चाहता है। सफल वही होगा, जिसने मस्तिष्क को समझने का प्रयत्न किया है। अपने जीवन में वही सफल हुमा है, जिसने उस पिटारी को खोला है, उसमें से कुछ निकालने का प्रयत्न किया है । जिसने अपने मस्तिष्क पर ध्यान नहीं दिया, वह कभी सफल नहीं हो सकता। सफलता की कुञ्जी मानव मस्तिष्क में सफलता की सारी कुञ्जियां भरी पड़ी हैं। उन कुञ्जियों में एक कुञ्जी है श्रद्धा। उसमें बाधा क्या है ? यह एक प्रश्न है । बुद्धि उसमें बाधा नहीं डालती है। बहुत लोग मानते हैं-जहां बुद्धि प्रबल है वहां श्रद्धा नहीं पनपती । यह एक भ्रम है, सचाई नहीं। बड़े-बड़े वैज्ञानिक और बुद्धिमान भी बहुत श्रद्धालु होते हैं। आइंस्टीन को दुनिया का प्रथम कोटि का वैज्ञानिक कहा जाता है। वह प्रथम कोटि का श्रद्धालु भी था। प्राचीन भारतीय इतिहास को देखें । जितने महान् मनीषी आचार्य और ऋषि हुए हैं, वे अत्यन्त श्रद्धाशील हुए हैं । कहना यह चाहिए-विचारों का मायाजाल श्रद्धा को कमजोर बनाता है । विचार और श्रद्धा में तादात्म्य नहीं है। जहां वैचारिक उलझनें ज्यादा आ जाती हैं वहां श्रद्धा कमजोर हो जाती है। विचार का काम आगे बढ़ाना भी है, पैरों में जंजीरें डालना भी है। बीमारी है ज्यादा सोचना बहुत जटिल है विचार का कार्य । यदि हम बहुत सोचें, तो विकास में बाधा आ जाएगी। सोचना जरूरी है किन्तु बहुत सोचना जरूरी नहीं है। जो लोग बहुत सोचते हैं, उनका दिमाग सदा भारी रहता है । ज्यादा सोचना भी एक बीमारी है। विचार हमारा अस्तित्व नहीं है। वह ओढा हुआ कपड़ा है, उधार लिया हुआ धन या पूंजी है। उधार की पूंजी से ज्यादा काम करें तो व्यापार में भी खतरा हो सकता है। उसको ऋण मानकर कभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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