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________________ १९२ मंजिल के पड़ाव है । यह अवश्य है-वे प्रकृति का अतिक्रमण नहीं करते किन्तु प्रकृति का परिवर्तन भी नहीं करते । परिवर्तन की क्षमता उनमें भी नहीं है। पशु ने कभी संकल्प नहीं किया-मुझे ऐसा बनना है । यदि उसमें संकल्पशक्ति विकसित रहती तो पशु भादमी बन जाता। एक आदमी को क्रोध आता है, उसमें क्रोध का नियंत्रण करने की क्षमता भी है किन्तु एक पशु में यह क्षमता नहीं है । उसका क्षयोपशम बहुत कमजोर होता है। मनुष्य क्रोध का उपशमन कर लेता है। दमन, उदात्तीकरण और रेचन--ये सारी वृत्तियां मानवीय मस्तिष्क में ही होती हैं इसलिए मनोविज्ञान मनुष्य का अध्ययन ज्यादा करता है। मनुष्य की मौलिक विशेषता भावों का नियमन करना या 'मुझे ऐसा बनना है', यह संकल्प करना मनुष्य की अपनी मौलिक विशेषता है । इसी आधार पर शेष सारे प्राणी मनुष्य से अलग-थलग हो जाते हैं। हम मानते हैं-देवता में बहुत शक्ति होती है। यदि उनसे इन्द्रियों के संयम के लिए कहा जाए तो क्या वे ऐसा कर पाएंगे? देवता यह नहीं कर पाते । इन्द्रिय, काम-वासना, लोभ-इन पर नियंत्रण की शक्ति मनुष्य के पास है । यह शक्ति और किसी के पास नहीं है । मनुष्य ने इस शक्ति का विकास किया है और इस शक्ति को पहचाना है धर्म ने। उसने कहा--तुम्हारे भीतर ऐसी शक्ति है, जिससे तुम कामनाओं का परिष्कार कर सकते हो। इसीलिए धर्म दुनिया का सबसे बड़ा तत्त्व बन गया। जब इन्द्रिय-संयम घटित होता है तब व्यक्ति प्रिय और अप्रियदोनों प्रकार की स्थितियों का सहन कर लेता है । मुनि के लिए कहा गयाकानों के लिए सुखकर शब्दों से प्रेम न करे । दारुण और कर्कश स्पर्श को भी सहन करे । जो दोनों स्थितियों में सम रहता है, वह इन्द्रिय संयम को साध लेता है' कण्ण सोक्खेहि सहि, पेमं नाभिनिवेसए । दारुणं कक्कसं फासं, कारण अहियासए । पुरुषार्थ चतुष्टयो चार पुरुषार्थ हैं-अर्थ, काम, धर्म और मोक्ष । इन चारों में धर्म को प्रधानता दी गई क्योंकि उसने मनुष्य को अपनी शक्ति से परिचित करा दिया । यदि धर्म न हो तो पदार्थ की शक्ति जागती जाएगी, चेतना की शक्ति सोती चली जाएगी। एक दिन ऐसा आएगा -- आत्मा बिलकुल सो जाएगी और मनुष्य रोएगा। व्यावहारिक जगत् में काम की भी एक सीमा १. दसवेआलियं ८/२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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