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देहे दुक्खं महाफलं
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बाद है ओदारिक शरीर ( स्थूल शरीर ) । हम उपवास करेंगे तो निर्जरा कैसे होगी ? उपवास कोई करे और प्रभावित कोई हो, यह कैसे संभव है ? हमारे सामने गहन प्रश्न है - खाना नहीं खाया स्थूल शरीर ने और क्षीण हुआ कर्मशरीर । यह कैसे होगा ? कर्मशरीर अपना काम कर रहा है और औदारिक शरीर अपना काम कर रहा है । कौन सा ऐसा तत्त्व है, जो दोनों को जोड़ रहा है | आगम का वचन है- एक सम्यग् दृष्टि ने उपवास किया । उसके निर्जरा अधिक होगी और कष्ट कम | एक मिथ्या दृष्टि ने उपवास किया । उसके कष्ट अधिक होगा और निर्जरा कम । यह कैसे होगा ? यदि कष्ट सहने से ही महान् फल मिलता तो पेड़ों को बहुत लाभ मिलता । ये पेड़ बर्फीली सर्दी में रात भर ठण्ड सहन करते हैं । भयंकर सर्दी में पशु, पक्षी, आदि खुले विचरते हैं । न जाने इनके कितनी निर्जरा होती होगी ।
भावना का मर्म
हम इन प्रश्नों के सन्दर्भ में चिन्तन करें, हमारे सामने कुछ बिन्दु स्पष्ट होंगे । एक बिन्दु यह है - निर्जरा का प्रमुख कारण है कर्म शरीर को प्रभावित करना, प्रकम्पित करना । कर्म शरीर को प्रभावित कौन करता है ? स्थूल बात वहां तक पहुंचती नहीं है । मनोविज्ञान की दृष्टि से विचार करें तो कहा जाएगा - सूक्ष्म तत्त्व अवचेतन मन को प्रभावित करता है, स्थूल तत्त्व उसे प्रभावित नहीं करता । जब हमारा सजेशन भीतर की गहराई तक पहुंच जाता है, तब वह अवचेतन को प्रभावित करता है । सतही स्तर पर वह प्रभावित नहीं होता । वह केवल उच्चारण मात्र से प्रभावित नहीं होता । उसे प्रभावित करने वाला तत्त्व है भावना | उसमें यह शक्ति है कि वह भीतर तक चली जाती है और कर्मशरीर को प्रकम्पित कर देती है । वह कर्म शरीर को धुन डालती है - धुणे कम्मसरीरगं । जिस व्यक्ति ने भावना का प्रयोग किया है, भावना के मर्म को समझा है, उसके वेदना कम होगी और निर्जरा अधिक । जिस व्यक्ति ने भावना के मर्म को नहीं समझा, उसके वेदना ज्यादा होगी और निर्जरा कम ।
सेतु है तेजस शरीर
उपवास के संदर्भ में यही बात है । जब हम उपवास करते है तब ताप पैदा होता है, ऊर्जा बढ़ती है, गर्मी बढ़ती है इसीलिए इसका नाम ही तपस्या रखा गया । जो सप्त धातुमय शरीर को तपाता है, उसका नाम है तप । उपवास तपाने की प्रक्रिया है । तपस्या के जो बारह प्रकार हैं, उनसे ताप बढ़ेगा, ऊर्जा बढ़ेगी । वही ऊर्जा सूक्ष्म शरीर तक जाकर चोट करेगी । वह चोट स्थूल शरीर नहीं करेगा । माध्यम बनता है तेजस शरीर । कर्मशरीर
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