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________________ समस्या के दो छोर आकाश में अनगिन तारे हैं । एक व्यक्ति ने सोचा- मैं तारों को गिन लूं । क्या यह संभव होगा ? समुद्र में इतनी लहरें है । क्या उन्हें गिना जा सकता है ? इससे भी ज्यादा कठिन है आदमी की समस्याओं को गिनना । समस्याएं ही समस्याएं हैं । समस्याओं का कहीं भी ओर छोर नहीं है । यदि रे समाज की समस्याओं को जोड़ दिया जाए तो न जाने कितनी समस्याएं हो जाएं । उन सारी समस्याओं को वर्गीकृत रूप दिया गया तब वे सिमट कर मात्र दो समस्याओं में समाहित हो गईं । ( भगवान महावीर ने संक्षेप में कहा— समस्याएं केवल दो हैं? 1- आरम्भ और परिग्रह - आरंभे चेव परिग्गहे चेव । हिंसा और परिग्रह- ये दो ही समस्याएं हैं । नर्म की बात समस्या का एक छोर है हिंसा, दूसरा छोर है परिग्रह । इन दो समस्याओं को समाहित किए बिना कोई भी मनुष्य केवली प्ररूपित धर्म को सुन नहीं सकता । आजकल सुनने के बहुत साधन हैं, पर बात बहुत मर्म की है । हमारी एक स्थिति होती है --कान खुला है पर सुनाई नहीं देगा । दूसरी स्थिति होती है- - कान खुला है, हमने सुना भी है पर समझा नहीं । जब तक इन दोनों स्थितियों को पार नहीं करेंगे तब तक सुनने की बात पूरी नहीं होगी । बहुत बार ऐसा होता है - शब्द के पुद्गल कान में पड़ रहे हैं, पर हम सुन नहीं पा रहे हैं। सुनने के साथ हमारी समनस्कता का होना भी जरूरी है, मन का जुड़ना भी जरूरी है | श्रवण और अर्थ - बोध एक विशेष मानसिकता की स्थिति में ही होता है । जो व्यक्ति हिंसा और परिग्रह की लालसा में उलझा हुआ है, वह अहिंसा और अपरिग्रह के धर्म को सुनता तो है, पर उसे वह सुनाई नहीं देगा । कितने हैं धार्मिक हम संसार की स्थिति का विश्लेषण करें । विश्व सुनने वाले लोग कितने हैं! पांच अरब में पचास लाख से नहीं । आज सारे संसार में इतने चर्च हैं, इतनी मस्जिदें हैं, १. ठाणं २/४१ १ Jain Education International For Private & Personal Use Only में धर्म की बात ज्यादा तो हैं ही इतने मंदिर और www.jainelibrary.org
SR No.003088
Book TitleManjil ke padav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages220
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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