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कल्याणकारी भविष्य का निर्माण
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सकती है ? यदि थोड़ा गहरे में जाएं तो पता चलेगा-जो व्यक्ति त्याग करता है, ठुकराता है, नहीं चाहता है, उसके पीछे-पीछे वह चीज आती है । जिसकी आशा करता है, वह दूर जाना चाहती है । यह एक प्रकृति का नियम
अनिदानता का सूत्र बहुत महत्त्वपूर्ण है। कोई निदान नहीं, बंधन नहीं। निदान का अर्थ होता है बंधन । निदानं निकाचनम-अपने आपको बांध देना । हम किसी चीज के साथ अपने-आपको बांध दें, वह मिले या न मिले, यह जरूरी नहीं है पर इससे कष्ट जरूर मिलेगा। किसी भी पदार्थ के साथ अपने आपको न बांधना, इसका नाम है अनिदान। यह अनिदान कल्याणकारी भविष्य का निर्माण करता है।
दृष्टि-सम्पन्नता
दूसरी बात है दृष्टि-संपन्नता । ज्ञान संपन्न होना अलग बात है और बुद्धि संपन्न होना अलग बात है । वस्तु का जो साक्षात्कार होता है, सम्यक दर्शन होता है, उसका मूल हेतु है दृष्टि-संपन्नता । आचार्य भिक्षु ने सूत्रों का अध्ययन किया था, पर राजनगर की एक घटना ने उन्हें दृष्टि-संपन्न बना दिया । जब तक हमारे में दृष्टि-संपन्नता नहीं आएगी, तब तक पढ़कर भी हम उसका सही अर्थ नहीं लगा सकेंगे। पढ़ने और समझ लेने में बहुत अन्तर होता है । आज धर्म और सम्प्रदाय के क्षेत्र में यह समस्या बन रही हैजो अनुभवी लोगों ने कहा, लिखा, उसे हम नहीं पढ़ रहे हैं, पर वह पढ़ रहे हैं, जो हमारा संस्कार बना हुआ है। हम महावीर को समझना नहीं चाहते किन्तु महावीर की वाणी को अपनी समझ में ढालना चाहते हैं । हमारे भीतर धारणा का एक चौखटा बना हुआ है। हम प्रत्येक बात को उसमें ढालेंगे। जहां वह नहीं ढलेगी, वहां फिर काट-छांट करेंगे। यह सब जहां होता है, वहां सम्यक्दर्शन नहीं होता, सत्य का साक्षात्कार नहीं होता। जब दृष्टि-संपन्नता आ जाती है तब सत्य का साक्षात्कार होता है। उस स्थिति में अपनी धारणा नहीं होती, अपना अभिनिवेश और आग्रह नहीं होता। जिसने जो कहा, उसे हम सीधा समझने का ही प्रयत्न करेंगे। यह जो पत्राचार चलता है, उससे अनेक बार समस्या उलझ जाती है। समस्याओं को पत्राचार से नहीं, आमने-सामने बैठकर सुलझाना चाहिए। पत्राचार से स्थितियां बिगड़ती चली जाती हैं। इसका कारण क्या है ? एक है अर्थ और एक है ग्रहण । एक व्यक्ति का अर्थ, सामने वाले व्यक्ति का ग्रहण और उसके बीच में माध्यम बनता है शब्द । शब्द पूरी बात कह नहीं पाता । ग्रहण करने वाला शब्द को विचित्र ढंग से पकड़ेगा। शब्द की अपनी अपूर्णता है इसीलिए अर्थ करने वाला उलझ जाता है। यदि मनुष्य दृष्टि-संपन्न बन गया, तो
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