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२. अनवत्रता - अलज्जनीय अंग वाला होना ।
३. परिपूर्ण इन्द्रियता - पांचों इन्द्रियों की परिपूर्णता और स्वस्थता । ४. स्थिर संहनन होना ।
मंजिल के पड़ाव
वचन सम्पदा
आचार्य की एक संपदा है- - वचन सम्पदा । आचार्य इस सम्पदा से सम्पन्न होता है तो उसकी बात कोई टाल नहीं सकता । एक बार जो बात कहे, वह शिरोधार्य हो जाए, सारे तर्क समाप्त हो जाए। वचन सम्पदा के चार विकल्प हैं
आदेयं वचनं पुण्यं मधुरं वचनं तथा । अनिश्रितमसंदिग्धं, एषा वचनसंपदा ॥
१. आदेय वचनता - जिसके वचन को सब स्वीकार करे ।
२. मधुर वचनता --- अपरुष वचन, अर्थयुक्त वचन या क्षीराश्रव लब्धियुक्त वचन |
३. अनिश्रित वचनता - मध्यस्थ वचन | आचार्य की वाणी कभी इधर और कभी उधर झुकी हुई नहीं होती । वह वचन मध्यस्थ होता है, जो क्रोध आदि से उत्पन्न नहीं होता, राग-द्वेष से युक्त नहीं होता ।
४. असंदिग्ध वचनता - संदिग्ध या भरमाने वाली बात न करना । आचार्य का वचन निर्णायक होता है ।
ये चारों संपदाएं एक दूसरे को जोड़ने वाली, समाज को जोड़ने वाली सम्पदाएं हैं ।
वाचना सम्पदा
पांचवी है वाचना सम्पदा । जो आचार्य इस सम्पदा से सम्पन्न नहीं होता, उसका संघ यशस्वी नहीं बनता । ऐसे आचार्य हुए हैं, जो केवल अपने तक सीमित रहे, शिष्यों पर ध्यान नहीं दिया । गर्गाचार्य के बारे में कहा जाता है— उनके शिष्य अविनीत थे । यह एक कोण हो सकता है, पर दूसरा कोण यह भी हो सकता है - गर्गाचार्य ने अपने पर ही ज्यादा ध्यान दिया, अपने शिष्यों को तैयार करने पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया । वह आचार्य कुशल होता है, जो शिष्यों का उत्पादन भी करता है और निष्पादन भी करता है । प्रश्न आया - वाचना किसलिए ? कहा गया - शिष्यों को तैयार करने के लिए | वाचना का अर्थ है अध्यापन | पाठ पढ़ाना, पदच्छेद कराना, चालता कराना, घोषविशुद्धि – सही उच्चारण कराना - ये सारे वाचना के अंग हैं | स्थानांग वृत्तिकार ने वाचना सम्पदा के चार विकल्प बतलाए हैं
१. विदित्वोद्देशन -- शिष्य की योग्यता को जानकर उद्देशन करना । २. विदित्वासमुद्देशन - शिष्य की योग्यता को जानकर समुद्देशन करना ।
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