________________
प्रस्तुति
क्षितिज के उस पार जो है, उसे देखना चाहता हूं। यह चाह शाश्वत चाह है। मनुष्य ने आर की अपेक्षा पार को अधिक महत्त्व दिया है। परोक्ष को प्रत्यक्ष करने की चाह केवल श्रवण या महत्त्व से पूरी नहीं होती, वह पूरी होती है मनन और मूल्यांकन के द्वारा। मूल्यांकन के अनेक कोण और अनेक बिन्दु हमारे सामने हैं। पर हमारे चरण श्रवण के पास आ ठिठुर जाते हैं और हम असहाय बने हुए फिर स्थूल की शरण में चले जाते हैं। ___मनन का प्रयोजन है स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना। अतीत की अभिसंधि परोक्ष के साथ जुड़ी हुई है। चिन्तन के कण पूरे आकाश-मण्डल में बिखरे पड़े हैं। उनकी उपलब्धि का उपाय है—मनन और मूल्यांकन।
मनन और मूल्यांकन में अतीत के साथ संपर्क स्थापित करने का एक विनम्र आयास है। आचार्यश्री तुलसी अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित करने की कला में दक्ष हैं। उनकी दक्षता पूरे संघ में संक्रान्त है। उसका मैंने उपयोग किया है।
इसके संपादन में मुनि दुलहराजजी को श्रमपूर्ण निष्ठा प्रज्वलित है।
विषय की गहराई में डुबकी लगाने वालों के लिए विषय-वस्तु मन की सीमा से परे नहीं होगी।
राणावास "१-११-१९८२
युवाचार्य महाप्रज्ञ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org