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१८ मनन और मूल्यांकन
कारण किया गया है । आवश्यक नियुक्ति में यह अर्थ उपलब्ध है । अर्हता का अर्थ इसके बाद किया गया है। इस अर्थभेद के होने पर 'अरहंत' और 'अरिहंत' ये एक ही दोनों धातु के दो रूपों में निष्पन्न दो शब्द नहीं होते किन्तु भिन्न-भिन्न अर्थ वाले दो शब्द बन जाते हैं।
आवश्यक सूत्र के नियुक्तिकार ने अरहंत, अरिहंत के तीन अर्थ किए हैं१. पूजा की अहंता होने के कारण अरहत। २. अरि का हनन करने के कारण अरिहंत । ३. रज-कर्म का हनन करने के कारण अरिहंत । वीरसेनाचार्य ने 'अरिहंताण' पद के चार अर्थ किए हैं१. अरि का हनन करने के कारण अरिहंत। २. रज का हनन करने के कारण अरिहत । ३. रहस्य के अभाव से अरिहंत । ४. अतिशय पूजा की अर्हता होने के कारण अरिहंत'।
प्रथम तीन अर्थ अरि+हन्ता-इन दो पदों के आधार पर किये गए हैं और चौथा अर्थ अर्ह, धातु के 'अरहता' पद के आधार पर किया गया है।
भाषा की दृष्टि से 'नमो' और 'णमो' तथा 'अरहताण' तथा 'अरिहंताणं'– इन दो में मात्र रूपभेद है, किन्तु मन्त्रशास्त्रीय दृष्टि से 'न' और 'ण' के उच्चारण की भिन्न-भिन्न प्रतिक्रिया होती है। 'ण' मूर्धन्य वर्ण है। उसके उच्चारण से जो
१. आवश्यक नियुक्ति, गाथा ६१६, ६२० :
इंदियविसयकसाये परीसहे वेयणाओ उवसग्गे। एए अरिणो हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ।। अविहं वि अ कम्म, अरिभूअं होइ सव्वजीवाणं।
तं कम्ममरिं हंता, अरिहंता तेण वुच्चंति ।। २. वही, गाथा ६२१, ६२२:
अरिहंति वंदणनमंसणाणि अरिहंति पूअसक्कारे । सिद्धिगमणं च अरिहा अरहता तेण वुच्चंति ।। .
देवासुरमणुएसु अरिहा पूआ सुरुत्तमा जम्हा । ३. वही, गाथा ६२२:
अरिणो रयं च हंता अरिहंता तेण वुच्चंति ।। ४. धवला, षट्खंडागम १-१-१, पृ०४३-४५ :
अरिहननादरिहन्ता।" रजोहननाद् वा अरिहन्ता।...
रहस्याभावाद् वा अरहन्ता।अतिशयपूजार्हत्वात् वार्हन्तः । ५. विद्यानुशासन, योगशास्त्र पृष्ठ ६०, ६१ ।
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