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अपरिग्रहः परमो धर्मः
आकाश को गुंजाने वाला यह स्वर बहुत बार सुना गया है-'अहिंसा परमो धर्मः' । 'अपरिग्रहः परमो धर्म:' का स्वर बहुत कम सुना गया है। 'अहिंसा परमो धर्मः' का उल्लेख दशवकालिक चूर्णि में मिलता है। महाभारत में भी इसका उल्लेख मिलता है-'अहिंसा परमो दमः, अहिंसा परमं दानम्' यह घोष बहुत पुराना है । आज एक नए घोष की जरूरत हैअपरिग्रहः परमो धर्मः । आचार्य तुलसी की उदयपुर यात्रा के दौरान यह घोष पहली बार मुखरित हुगा । प्रश्न होगा----यह घोष क्यों ? आश्चर्य तो यह है कि यह घोष पहले मुखर क्यों नहीं हुआ ? जब 'अहिंसा परमो धर्मः' का स्वर उच्चरित हुआ था तब उसके साथ साथ 'अपरिग्रहः परमो धर्मः' का स्वर भी उच्चरित होना चाहिए था। हिंसा का कारण : आर्थिक विषमता
अहिंसा और अपरिग्रह-दोनों को अलग अलग देखेंगे तो पूरी बात समझ में नहीं आएगी। अपरिग्रह के बिना अहिंसा को नहीं समझा जा सकता । अहिंसा को समझने के लिए अपरिग्रह को समझना जरूरी है और अपरिग्रह को समझने के लिए अहिंसा को समझना जरूरी है।
आदमी हिंसा किसलिए करता है ? शरीर के लिए, परिवार के लिए, भूमि और धन के लिए, सत्ता के लिए। ये सब क्या हैं ? ये सारे परिग्रह हैं । हिंसा का मुख्य कारण है--परिग्रह । कोई अहिंसा करना चाहे और अपरिग्रह करना न चाहे, यह कभी संभव नहीं है । इच्छा, हिंसा और परिग्रहतीनों में परस्पर संबंध है, तीनों साथ-साथ चलते हैं। एक व्यक्ति धन कमाना चाहता है । क्या हिंसा के बिना धन का अर्जन संभव है ? आज अपरिग्रह को एक नया संदर्भ मिला है। इस शताब्दी में दुनिया के अनेक विचारकों ने देखा, हिंसा बहुत है, समाज में असंतोष बहुत है। क्रांतियां
और रक्तपात हो रहा है। चिन्तन के बाद उन्हें लगा, इसका कारण परिग्रह है । आर्थिक विषमता के कारण ये स्थितियां बन रही हैं। मार्क्स और गांधी
__ आज अहिंसा हमारे चिन्तन का गौण विषय हो गया, परिग्रह मुख्य विषय बन गया। आज चिन्तन की सारी धारा आर्थिक समानता और आर्थिक विषमता-इन दो बिन्दुओं पर टिकी हुई है । आर्थिक विषमता रहेगी तो
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