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अस्तित्व और अहिंसा
टूटेगी ? कार्बन की मात्रा कैसे नहीं बढ़ेगी ? ऑक्सीजन में कभी क्यों नहीं आएगी ? पर्यावरण का सन्तुलन क्यों नहीं बिगड़ेगा ?
संकल्प लें
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हम इस सच्चाई को समझें । भगवान महावीर ने कहा - इस सच्चाई को जानकर मेधावी पुरुष यह संकल्प ले — मैंने हिंसा और असंयम बहुत किया। मैं वह अब नहीं करूंगा । मैं अब अहिंसा और संयम की साधना करूंगा । जैसे-जैसे यह संकल्प बलवान् बनता है, शक्तिशाली बनता है वैसे-वैसे व्यक्ति में परिवर्तन आना शुरू हो जाता है । जैसे-जैसे संयम बढ़ेगा, असंयम कम होगा, कठिनाइयां भी कम होंगी ।
एक अफसर का कद बहुत नाटा था । कार्यालय में एक कर्मचारी से उसका दोस्त मिलने आया । उसने पूछा- अफसर कौन है ? कर्मचारी ने सामने बैठे व्यक्ति की ओर इशारा किया । मित्र ने कहा - अरे ! यह तो बहुत छोटा है । कर्मचारी बोला -- मुसीबत जितनी अच्छा है ।
छोटी हो, उतना ही
वर्तमान सन्दर्भ
हम जितना संयम करेंगे, समस्या उतनी ही छोटी होती चली जाएगी, वह लम्बी नहीं बनेगी, भयंकर और विकराल नहीं होगी । यदि आज सचमुच विश्वको पर्यावरण सन्तुलन की चिंता है, उससे होने वाले परिणामों की चिन्ता है तो उसके लिए धर्म का पाठ, अहिंसा और संयम का पाठ समझना सबसे ज्यादा जरूरी है । संयम की बात केवल मोक्ष के सन्दर्भ में ही नहीं कही गई है । धार्मिक लोग भी प्रायः संयम और अहिंसा की बात मोक्ष के
सन्दर्भ में करते हैं । जिसे मोक्ष जाना ही नहीं है, वह क्यों इस बात को मानेगा ? मोक्ष के सन्दर्भ में धर्म की बात करना उसका एक पहलू है किन्तु जीवन के सन्दर्भ में वह बहुत मूल्यवान् है । इस सचाई को वर्तमान सन्दर्भ में समझना बहुत जरूरी है । यदि धर्म की बात को वर्तमान युग की समस्याओं के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया जाए, अधर्म और हिंसा से उत्पन्न होने बाली परिस्थितियों और कठिनाइयों के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया जाए तो प्रत्येक व्यक्ति धर्म का मूल्यांकन करेगा, अहिंसा और संयम का मूल्यांकन करेगा, धर्म की बात बहुत व्यापक बन जाएगी। धर्म का एक सूत्र है - अतीत की भूलों को न दोहराना । प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प ले - मैंने अब तक जो भूलें की हैं, उन्हें पुन: नहीं करूंगा, जो प्रमादवश होगी । यह संकल्प समस्या के सघन तिमिर में समाधान का दीप बन सकता है ।
किया है, उसकी पुनरावृत्ति नहीं
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