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अस्तित्व और अहिंसा
बिलों में पड़े रहते हैं वैसे ही मनुष्य पहाड़ का गुफाओं में दुबके रहेंगे। यह भूमि अंगारों के समान तप्त हो जाएगी। सारी भूमि तप उठेगी। अंगारों पर चलना और भमि पर चलना एक समान लगेगा।
भगवती सूत्र का यह वर्णन क्या परमाणु युद्ध से पैदा होने स्थिति का वर्णन नहीं है ? उन्होंने पहले कैसे देखा कि ऐसा कुछ होने वाला है ? आज जो चल रहा है, उससे ऐसा लगता है-आदमी ठीक उसी दिशा में जा रहा है। आज का वैज्ञानिक और राजनेता हिंसा की दिशा में जा रहा है, इसका अर्थ है-वह मौत की दिशा में जा रहा है और जानबूझकर आंखमिचौनी खेल रहा है, अपने आपको धोखा दे रहा है । धोखा खा रहा है आदमी
मालिक ने नौकर से कहा-यह लिफाफा ले जाओ, टिकट लगाकर पोस्ट ऑफिस में पोस्ट कर आओ। नौकर ने वापस आकर मालिक से कहायह लो टिकट ।
____ मालिक ने पूछा---यह टिकट क्यों लाए ? क्या लिफाफा पोस्ट नहीं किया ?
उसने कहा-मैंने लिफाफा पोस्ट कर दिया। यह टिकट कैसे लाए ?
जब मैं लिफाफा पोस्ट कर रहा था तब पोस्टमास्टर की नजर दूसरी तरफ थी इसलिए मैंने टिकट नहीं लगाया। बिना टिकट लगा लिफाफा पोस्ट कर टिकट को बचा लिया।
आदमी दूसरों को धोखा देना चाहता है पर वह यह नहीं सोचता है कि वह स्वयं धोखा खा रहा है। बिना टिकट लगा लिफाफा बैरंग माना जाता है। उसे छुड़ाने के लिए टिकट की कीमत से भी अधिक कीमत अदा करनी पड़ती है। प्रश्न है-धोखा किसने खाया ? मालिक ने या पोस्टमास्टर ने ? वस्तुतः आदमी स्वयं को ही धोखा देता है, दूसरों को नहीं। उसमें यह प्रवृत्ति बढ़ रही है, वह अपने आपको धोखा देता चला जा रहा है। मूर्छा इतनी प्रबल है कि आदमी समझते हुए भी समझ नहीं पा रहा है । काल की उदीरणा न हो जाए
आज सारे वैज्ञानिक भविष्य के प्रति चिंतित हैं । विश्व स्वास्थ्य संगठन के लोग अनेक बार यह घोषणा करते हैं-वनों की कटाई कम करें, पदार्थ और जल का सीमित प्रयोग करें। वैज्ञानिक स्तर पर आने वाली इन चेतावनियों के बावजूद सब कुछ वैसा ही चल रहा है । सब लोग वैसे ही कर रहे हैं, सरकारें भी वैसे ही चलती जा रही हैं। पैसे का लोभ सरकार को भी है, जनता को भी है, ठेकेदारों और अधिकारियों को भी है । इस पैसे के चक्र में, लोभ और
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