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________________ ज्ञानी रात को जागता है ८६ रहता है, वह जागृत नहीं होता। इसका मतलब है-वह व्यक्ति सार की बात नहीं करता, जिन बातों का जीवन निर्माण में कोई महत्त्व नहीं होता, उन्हीं में लगा रहता है। ऐसा आदमी कभी जीवन की सचाई तक नहीं पहुंच अध्यात्म की भाषा में यह अनुभव किया गया-जो सत्य को प्राप्त नहीं होता, वह सोया हुआ है । जागा हुआ वही है, जिसने सत्य को देखा है, जाना है और जो सत्य के साथ जीता है । ___ एक वह व्यक्ति सोया हुआ है, जो नींद लेता है लेकिन वह दिन रात नींद नहीं लेता। निद्रा और अनिद्रा-दोनों साथ-साथ चलते हैं किन्तु जो विषय, कषाय आदि प्रवृत्तियों का जीवन जीता है, वह चौबीस घण्टे सोया रहता है । इसीलिए कहा गया-'सुत्ता अमुणिणो सया, मुणिणो सया जागरंति' अज्ञानी आदमी जागते हुए भी सोता है, ज्ञानी आदमी सोते हुए भी जागता है । ज्ञानी आदमी की आन्तरिक चेतना हमेशा जागरूक रहती है। जागरूकता का निदर्शन ___ मुनि के लिए कहा गया---मुनि नींद ले तो जागत नींद ले, सोता हुआ भी बराबर जागरूक बना रहे। जागरूक वह होता है, जिसे कोई बुरा स्वप्न नहीं आता, बुरी कल्पना नहीं आती। जागरूक व्यक्ति का लक्षण है स्वप्न में भी बुरे विचार का न आना । जब महासती सीता को अग्नि-परीक्षा के लिए ले जाया गया, तब अग्निकुंड के समीप खड़ी होकर उसने कहा--- मनसि वचसि काये जागरे स्वप्नमार्गे, यदि ममपतिभावो राघवादन्यसि । तदिह दह शरीरं पावकं मामकेद, विकृतसुकृतमाजां येन साक्षी त्वमेव ।। हे अग्नि ! जागत या स्वप्न अवस्था में मन, वचन और काया में, राम के सिवाय किसी अन्य के प्रति पति-भाव आया हो तो तुम मुझे जला देना क्योंकि तुम मेरे विकृत और सुकृत आचरण के साक्षी हो। यह बात कौन कह सकता है ? जो सदा जागृत रहता है, सोते हुए भी जागृत रहता है, वही यह बात कह सकता है । शरीरशास्त्र का अभिमत जागरण के लिए आंतरिक चेतना को जगाना बहुत जरूरी है। आज का शरीर-शास्त्री दो रसायनों के आधार पर नींद और जागरण की व्याख्या करता है। एक है सेराटोनिन, दूसरा है मेलाटोनिन । जब सेराटोनिन बनता है और उसमें कोई अवरोध आ जाता है तो अनिद्रा की बीमारी पैदा हो जाती है। जागने में हेतु बनता है मेलाटोनिन रसायन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003086
Book TitleAstittva aur Ahimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size9 MB
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