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जयाचार्य और मार्क्स
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जयाचार्य के स्वर्गवास का समय है ईस्वी सन् १८८१ और मार्क्स का देहावसान हुआ ईस्वी सन् १८८३ में। केवल दो वर्ष का अन्तर। जयाचार्य
और मार्क्स-दोनों का अस्तित्व काल एक समान रहा है। समकालिक होते हुए भी क्षेत्रीय दृष्टि से इन दोनों महान् व्यक्तियों में बहुत दूरी है। जयाचार्य हिन्दुस्तान में जन्मे और मार्क्स यूरोप में। मार्क्स को अनेक देशों में प्रवास करना पड़ा। उन्हें देश से निकाल दिया गया। वे फ्रान्स और लन्दन में भी रहे। मार्क्स का कार्यक्षेत्र था समाज इसलिए उन्होंने आर्थिक भूमिका पर अधिक चिन्तन किया। जयाचार्य का कार्यक्षेत्र था अध्यात्म। उनके सामने साधु-समाज का प्रश्न था। किन्तु प्रयोग की दृष्टि से विचार करें तो जयाचार्य और मार्क्स- दोनों एक भमिका पर आ जाते हैं। जयाचार्य ने साधु-समाज में संविभाग और समता का प्रयोग किया। मार्क्स ने भी समाज में समानता और संविभाग का प्रयोग किया। जयाचार्य के समय साधु-समाज में व्यवस्थाएं थीं लेकिन जितनी व्यवस्थाएं अपेक्षित थीं, उतनी नहीं थीं।
संविभाग और समता
आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ धर्मसंघ को व्यवस्था प्रधान धर्मसंघ बनाया। व्यवस्थाओं को बहुत मूल्य दिया। मूल चरित्र है किन्तु आचार की शुद्धि के लिए व्यवस्थाओं को महत्त्व देना भी जरूरी है। यह माना गया - व्यवस्थाएं अच्छी होंगी, अनुशासन सम्यग् होगा तो चरित्र अच्छा पाला जाएगा। अनुशासन, मर्यादा और व्यवस्थाएं नहीं होंगी तो चरित्र की आराधना में कठिनाई होगी। इस आधार पर आचार्य भिक्षु ने व्यवस्थाओं पर ध्यान दिया। जयाचार्य भी व्यवस्था के प्रति बड़े जागरूक थे। जयाचार्य ने धर्मसंघ में संविभाग का प्रयोग किया। छोटा साध है या बड़ा साधु है। कम पढ़ा लिखा साधु है या अधिक पढ़ा लिखा साधु है। पर व्यवस्था का जहां प्रश्न है वहां संविभाग होना चाहिए, समता होनी चाहिए। समर्थ साध्वी है या कमजोर साध्वी है किन्त जहां व्यवस्था का प्रश्न है वहां संविभागिता और साम्य होना चाहिए। अगर अहिंसा के क्षेत्र में साम्य नहीं होगा, संविभाग नहीं होगा तो क्या हिंसा के क्षेत्र में होगा?
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