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जयाचार्य और मार्क्स
इतिहास साक्षी है - दुनिया में जितने बड़े लोग हुए हैं, उन्होंने समाज के दुःख को मिटाने का प्रयत्न किया है। ऐसे भी कहा जा सकता है - जिन लोगों ने समाज को दुःख - मुक्त करने का प्रयत्न किया है, वे ही बड़े बने हैं। दुःख है, इस तथ्य को सबने स्वीकार किया और यह प्रयत्न किया - समाज का दुःख कम कैसे हो? व्यक्ति का दुःख कम कैसे हो ? समाज, राजनीति और धर्म से जुड़े लोगों ने इस दिशा में बहुत कार्य किया है ।
दुःख - मुक्ति के प्रयत्न
इस दुनिया में अनेक दार्शनिक हुए हैं, जिन्होंने दुःख - मुक्ति के स्वर को उदात्त किया। ईसा पूर्व पांचवी - छठी शताब्दी में महावीर, बुद्ध और कन्फ्यूशियस ने दुःख को मिटाने की बात कही । दुःख की भाषा और परिभाषा में भिन्नता हो सकती है पर दुःख मिटे, इस शब्दावलि में कोई विमत नहीं है। महावीर और बुद्ध - दोनों ने दुःख - मुक्ति का प्रयत्न किया। अन्तर केवल इतना सा था- बुद्ध ने केवल वर्तमान के दुःख को मिटाने पर अधिक बल दिया और महावीर ने दुःख के मूल को मिटाने पर अधिक बल दिया । कन्फ्यूशियस का मत था बुद्धि का विकास हो लेकिन केवल बुद्धि से ही काम नहीं चलेगा। उसके साथ-साथ भावना का विकास हो, अनुशासन का विकास हो। इससे परिवार में सुख एवं शान्ति का वातावरण बनेगा। परिवार अच्छा बनेगा तो राज्य अच्छा बनेगा। राज्य अच्छा बनेगा तो समाज सुखी एवं शान्त रहेगा।
अनुभव शोषित वर्ग की पीड़ा का
ईसा, मोहम्मद साहब आदि जितने बड़े-बड़े व्यक्तित्व उभरे, उन सबने को मिटाने का प्रयत्न किया। यह इतिहास का एक शाश्वत
दुःख
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