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ध्यान की विभिन्न धाराएं
योग का आदि - बिन्द
ध्यान की परम्परा बहुत प्राचीन है। उसका आदिम्रोत खोजना बहुत कठिन है। यह प्राग-ऐतिहासिक है। उपलब्ध ग्रंथों के आधार पर योग के आदि - बिन्दु की कल्पना की जा सकती है। आदिनाथ को योग का प्रवर्तक बतलाया गया है।। 'आदिनाथ' यह नाम जैन और शैव-दोनों परंपराओं में प्रसिद्ध है। जैन परंपरा में आदिनाथ भगवान् ऋषभ का नाम है और शैव परम्परा में आदिनाथ शिव का नाम है। आधुनिक विद्वानों का अभिमत है कि ऋषभ और शिव-दोनों एक ही व्यक्ति हैं। वह दो भिन्न परंपराओं में दो नामों से प्रतिष्ठित हैं। आचार्य शभचन्द ने ज्ञानार्णव के प्रारंभ में भगवान् ऋषभ की एक योगी के रूप में वंदना की है। महाभारत के अनुसार हिरण्यगर्भ योग का वेत्ता है। उससे पुराना कोई योगवेत्ता नहीं है। सांख्य योग परंपरा में हिरण्यगर्भ सगण ईश्वर के रूप में मान्य रहा है। श्रीमद् भागवत में भगवान ऋषभ को योगेश्वर कहा गया है। उन्होंने नाना योग चर्याओं का चरण किया था। संभव है उनके ऋषभ,आदिनाथ, हिरण्यगर्भ और ब्रह्मा-ये नाम प्रचलित थे।
1. हठयोग प्रदीपिका : १/१७
श्री आदिनाथाय नमोस्त तस्मै. येनोपदिष्टा हठयोगविद्या।
विभाजते प्रोन्नतराजयोगमारोमिच्छोधिरोहिणीव।। 2. जानाणंव १/२
योगिकल्पतरु नौमि, देवदेवं वृषभध्वज। 3. महाभारत शान्तिपूर्व : अ. ३४९/६५
हिरण्यगर्भो योगम्य वेत्तानान्यः पुरातनः। 4. श्रीमद् भागवत : ५/४/३
भगवान् ऋषभदेवो योगेश्वर । 5. श्रीमद् भागवत ५/५/२६
नानायोगचयांचरणो भगवान कैवल्यपति षभा
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