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________________ मन की शान्ति का प्रश्न एक बहुत ही नटखट बन्दर है और उसके साथ हमें जीना है। उसे समझना जरूरी है। हमारा मन चंचल बन्दर है। उसे समझना इसलिए आवश्यक है कि हम उसे समझकर शान्तिमय, सुखमय और आनन्दमय जीवन जी सकें । उदयपुर की घटना है । मेडिकल कॉलेज से एक प्रोफेसर आए। उन्होंने कहा-----मुनिजी ! मन की विकट समस्या है। बड़ा चंचल है। कहीं स्थिर होता ही नहीं। मन की चंचलता एक समस्या है शरीर-चिकित्सक के लिए भी और मनश्चिकित्सक के लिए भी । धार्मिक व्यक्तियों के लिए भी यह समस्या बना हुआ है । जब इन सबके सामने मन की समस्या है तब साधारण व्यक्ति की तो बात ही क्या ? उसके सामने मन की कितनी बड़ी समस्या होगी, इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती। एक भाई गैस ट्रबल से पीड़ित था। हार्ट ट्रबल की बात सुनकर वह चिन्तित हो गया। उसका मन टूट गया । उसके मन पर भी असर हो गया। अब जब कभी भी हार्ट ट्रबल वाले मित्र की याद आती है या यह स्मरण हो आता है कि गैस ट्रबल वाले को हार्ट ट्रबल भी हो जाता है तो वह बुरी तरह से परेशान हो जाता है। बड़ी समस्या है। उसका शारीरिक बल क्षीण होता जा रहा है। उसके सामने बार-बार वही बात आती है, वही चित्र आता है तब उसमें निराशा छा जाती है। एक व्यक्ति नहीं, न जाने कितने व्यक्ति इस प्रकार की जटिल समस्याओं से आक्रान्त रहते हैं । यदि उन की सारी समस्याओं का आकलन किया जाए तो न जाने कितने महाग्रन्थ तैयार हो जाएं। हर व्यक्ति के सामने समस्या है । इसलिए मन को समझना बहुत जरूरी है। मैं इस बात पर इसलिए बल दे रहा हूं कि हम मन को जानते नहीं, समझते नहीं । मन जो है, वह है । वह बेचारा दोषी नहीं है । हम उस पर दोष आरोपित कर रहे हैं। दोषी कोई दूसरा ही है किन्तु हम मन पर ही सारा भार डाल देते हैं। मन बेचारा गधा है, जो निरन्तर भार ढोता है। भार लादने वाला कोई दूसरा है और वह है भाव । जब तक हम भाव को नहीं समझेंगे तब तक मन की समस्याओं का समाधान नहीं पा सकेंगे । सभी मानसिक उलझनों तथा समस्याओं का मूल कारण है भाव । भाव ही सारी समस्याएं उत्पन्न करता है और उनकी अभिव्यक्ति करवाता है मन के द्वारा। सेनापति कन्ट्रोल रूप में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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