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संबंधों का नया क्षितिज
पढ़े-लिखे लोग पृथक्-पृथक् चिन्तन करते हैं तब वह चिन्तन अधूरा होता है, समस्या का पूरा स्पर्श नहीं करता । इसका अर्थ होता है, समस्या को चिरकालीन बना देना, चिरायु बना देना । जब तक प्रक्रिया समन्वित नहीं होती तब तक समाधान नहीं मिलता ।
हम यह कैसे अस्वीकार करेंगे कि भ्रष्टाचार, सामाजिक विषमता और आर्थिक विषमता के पीछे लोभ की समस्या नहीं है । लोभ केवल धन का ही नहीं होता, वह सत्ता का भी होता है, आवश्यकताओं का भी होता है । आज सत्ता के लिये कितनी उखाड़ पछाड़ होती है । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति at औद्योगिक विकास में आगे बढ़ने देना नहीं चाहता । एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को सार्वजनिक आसन पर आगे आने देना नहीं चाहता। इन सबके पीछे लोभ की मनोवृत्ति कार्य करती है। जब तक लोभ की समस्या का समाधान नहीं होता, तब तक दूसरी समस्याएं कैसे समाहित हो सकती हैं ? दूसरी सारी समस्यायें लोभ की उपजीवी समस्याएं हैं । लोभ सबको पोषण और संरक्षण दे रहा है।
तीसरी समस्या है -- असहिष्णुता की समस्या । आज का आदमी सहना नहीं जानता । आज के युग के अनेक नाम हैं-वैज्ञानिक युग, औद्यो युग, आणविक युग आदि-आदि । यदि मुझे आज के युग के नामकरण का दायित्व दिया जाए तो मैं कहूंगा, आज का युग असहिष्णुता का युग है । पांच-सात वर्ष का बेटा बाप की बात को सहन नहीं करता । दस वर्ष होने पर घर से पलायन कर जाता है। पूछने पर कहता है, माता-पिता प्रतिक्षण कुछ न कुछ कहते ही रहते हैं । असहिष्णुता का बीज - वपन प्रारंभ से ही हो जाता है । कोई किसी को सहना जानता ही नही । बड़ी समस्या है यह असहिष्णुता । संभव है यह युग के विकिरणों का प्रभाव है, परमाणुओं का प्रभाव है । वे विकिरण सहिष्णुता को दबोच रहे हैं ।
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चौथी समस्या है— माया, कपट, प्रवंचना |
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ये चार समस्याएं आज के युग की ज्वलंत समस्याएं हैं । ये मनुष्य की मौलिक आदतें बनी हुई हैं और आज के युग का भी इन्हें पूरा समर्थन मिल रहा है । जो व्यक्ति ध्यान साधना में जाता है, उसकी ये आदतें रूपान्तरित होनी चाहिए । हमारी जागतिक चेतना 'कन्डीसन्ड माइन्ड' में परिवर्तित हो गई है । उसमें ये सारी आदतें घर कर गई हैं। इनका उन्मूलन सहज नहीं है । जब तक 'सुपर माइन्ड' को सक्रिय नहीं कर दिया जाता तब तक इनको नियंत्रित नहीं किया जा सकता। जब तक अवचेतन मन को सक्रिय नहीं किया जाता तब तक आदतों का बदलना असंभव जैसा है । आदतों को बदलना, स्वभाव को बदलना बहुत टेढ़ा प्रश्न है । व्यवस्था बदली जा सकती है, पर आदमी की आदत नहीं बदली जा सकती
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