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________________ ३४ अवचेतन मन से संपर्क जाती है। एक अमेरिकी डाक्टर ने कुछ ऐसे रसायनों को खोजा है, जो चिन्ता उत्पन्न करते हैं । चिन्ता को मिटाने वाले नहीं, चिन्ता को पैदा करने वाले । एक आदमी शांत है, प्रसन्नचित है, उसे उस रसायन का इंजेक्शन लगाया जाए, वह चिन्ता से ग्रस्त हो जाएगा । जब तक उस इंजेक्शन का प्रभाव रहेगा वह चिन्ता से ग्रस्त रहेगा, प्रभाव समाप्त होते ही चिन्ता भी समाप्त हो जाएगी । अथवा दूसरे रसायन का इंजेक्शन देते ही चिन्ता समाप्त हो जाएगी। चिन्ता को उत्पन्न किया जा सकता है, चिन्ता को समाप्त किया जा सकता है । भय पैदा किया जा सकता है भय मिटाया जा सकता है । हमारे सारे भाव पैदा किए जा सकते हैं। मिटाए जा सकते हैं। जितने भाव बनते हैं, उतने ही रसायन बनते हैं और उतना ही उन पर विद्युतीय प्रभाव हो सकता हमारा मस्तिष्क इन दो प्रभावों-रासायनिक प्रभाव और विद्युतीय प्रभाव के बीच काम करता है । यह प्रश्न अनेक बार आता है कि जब इन सब उपायों से परिवर्तन घटित किया जा सकता है तो फिर ध्यान का प्रयोग क्यों किया जाए ? इन्जेक्शन और इलेक्ट्रोड का प्रयोग सीधा है । उनका प्रयोग किया और क्रोध शांत, कामवासना शांत, उत्तेजना शांत । फिर क्यों तीन-छह मास तक ध्यान किया जाए ? क्यों इतनी लम्बी प्रक्रिया की जाए ? क्यों इतना समय लगाया जाए ? इतना बड़ा दीर्घकाल-साध्य प्रपंच क्यों करे ? प्रश्न ठीक है। इसका समाधान यही है कि ध्यान की प्रक्रिया के अतिरिक्त सारे उपाय अस्थायी प्रभाव पैदा करने वाले होते हैं उनसे स्थायी हल नहीं होता । स्थायी समाधान के लिए एकमात्र उपाय है ध्यान । अध्यात्म ने स्थायी समाधान की दिशा में खोज की और उसने उन-उन केन्द्रों की पूरी प्रक्रिया को ही बदल देने का उपक्रम किया । उस उपक्रम से प्रवृत्ति और भावनादोनों बदली जा सकती हैं। शरीरशास्त्रियों ने केवल शरीर के आधार पर उपाय खोजा और मानस-शास्त्रियों ने केवल मन और मस्तिष्क के आधार पर उपाय खोजा। उनकी अभी तक वहां पूरी पहुंच नहीं हो पाई है कि भाव कहां से पैदा हो रहे हैं ? इनका स्रोत कहां है ? यह बहुत सूक्ष्म रहस्य है, सूक्ष्म समस्या है। इसीलिए कभी-कभी कुछ प्रयोगों में अन्तविरोधी बात भी आ जाती है। यह विरोधाभास जीवन का एक अंग बन चुका है। प्रत्येक आदमी अन्तविरोधों का जीवन जीता है-कहता कुछ है और करता कुछ है । अध्यात्म का मार्ग विरोधाभासों से मुक्त, निर्द्वन्द्व और स्पष्ट मार्ग है। उसमें कोई विसंगति नहीं है। वह केवल शोधन की प्रक्रिया है, रेचन की प्रक्रिया है। आज के लोग मनोविज्ञान के संदर्भ में एक भ्रान्त धारणा को लिए चल रहे हैं कि भारतीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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