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मस्तिष्क के नियंत्रण का विकास
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हुये हैं । शरीर में ऐसे केन्द्र हैं, जो हमारे आवेगों, संवेगों और प्रवृत्तियों को उत्पन्न करते हैं और ऐसे भी केन्द्र हैं, जो उन पर नियन्त्रण करते हैं । हमारी आन्तरिक प्रक्रिया में यह सहजभाव से चल रहा है।
नाड़ी संस्थान दो भागों में विभक्त है - स्वचालित नाड़ी संस्थान और ऐच्छिक नाड़ी संस्थान । स्वचालित नाड़ी - संस्थान से आन्तरिक क्रियाएं अपने आप हो रही हैं। क्रोध की उत्पत्ति का एक केन्द्र है तो उसके नियमन का भी केन्द्र है । दोनों व्यवस्थाएं हैं । यदि उत्पत्ति का केन्द्र हो और नियमन का केन्द्र न हो तो क्रोध या अन्य आवेग इतना आ सकता है कि वह समूचे शरीर की प्रक्रिया को बदल सकता है । यह शरीर की अपनी व्यवस्था है और उसमें दोनों प्रकार के केन्द्र हैं । एक केन्द्र है हाईपोथेलेमस में 'डोसोमिलियन न्यूक्लीयस' | यह क्रोध को उत्पन्न करता है, उत्तेजना पैदा करता है । वहीं दूसरा केन्द्र है – ' वेन्ट्रामिलियन न्यूक्लीयम' जो क्रोध या उत्तेजना पर नियंत्रण करता है । यदि पहले केन्द्र को निकाल दिया जाए तो क्रोध आएगा ही नहीं और यदि दूसरा केन्द्र निकाल दिया जाए तो क्रोध या उत्तेजना पर नियंत्रण ही नहीं हो पाएगा ।
यह सच है कि हमारे शरीर की आंतरिक व्यवस्थाओं में और स्वचालित नाड़ी संस्थान में दोनों प्रकार की प्रवृत्तियां हैं -- उद्भव और नियमन । दोनों अपने आप होते हैं । किन्तु क्रोध जो अभिव्यक्त होता है, उस पर नियन्त्रण करने का कोई साधन ऐच्छिक नाड़ी संस्थान में नहीं है । वह इस पर नियंत्रण नहीं कर सकता ।
ध्यान की विकसित प्रक्रिया में ऐच्छिक नाड़ी संस्थान पर नियंत्रण करने और क्रोध को शांत करने की प्रक्रिया का निर्देश भी है । स्वचालित नाड़ी- संस्थान और ऐच्छिक नाड़ी संस्थान — दोनों पर हमारा नियमन हो सकता है | आज के मनोविज्ञान में यह माना गया है कि सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम, आटोनोमिक नर्वस सिस्टम और हाईपोथेलेमस - ये तीन बड़े नियामक केन्द्र हैं और इनके साथ-साथ मस्तिष्क का कुछ भाग तथा नाड़ी संस्थान का कुछ भाग भी नियमन करता है । किन्तु योग और अध्यात्म की प्रक्रिया में इनसे हटकर कुछ और बातें भी बतलाई गई हैं, जो केवल शारीरिक विधि व्यवस्था से संबंधित नहीं हैं । उनका सम्बन्ध भावना है से । वे भावात्मक प्रक्रियाएं हैं, जिनके द्वारा उन केन्द्रों में परिवर्तन लाया जा सकता है । रसायनों के द्वारा परिवर्तन करना, विद्युत् प्रवाह अथवा इलेक्ट्रोड के द्वारा परिवर्तन करनायह एक प्रक्रिया है किन्तु स्थाई नहीं है । जब तक इलेक्ट्रोड लगा रहता है, तब तक उसका प्रभाव बना रहता है और उसके हटाने पर प्रभाव गायब हो जाता है । रसायन का इंजेक्शन लगाते ही क्रोध उपशान्त हो जाता है पर उसका प्रभाव भी स्थायी नहीं होता । कुछ समय पश्चात् स्थिति पूर्ववत् हो
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