SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अवचेतन मन से संपर्क २६ साथ दूसरी समस्या खड़ी होती है, इसे रोका नहीं जा सकता। यह कैसे माना जा सकता है कि धरती पर स्वर्ग उतर आएगा । एक दिन ऐसा आएगा कि मनुष्य समस्याओं से मुक्त हो जायेगा । क्या समृद्धि के शिखर पर पहुंचने वाले राष्ट्र समस्याओं से मुक्त हैं ? क्या आर्थिक विकास के साथ-साथ समस्याएं समाप्त हो जाती हैं ? आज विकसित राष्ट्रों में पागलपन बढ़ गया। वहां पागलों की संख्या अधिक है । अविकसित राष्ट्रों में यह समस्या नहीं है पर दूसरी अनेक समस्याएं हैं। ___ समस्या का स्थायी उपाय है--बाहरी व्यक्तित्व और आन्तरिक व्यक्तित्व का संतुलन । इसको हमने भुला दिया। भारतीय चिन्तन में इसका बहुत विकास हुआ था पर आज वह विस्मृत कर दिया गया है। दोनों व्यक्तित्वों का विकास होने पर ही समस्या का समाधान होता है । जैसे-जैसे बाहरी व्यक्तित्व का विकास होता है वैसे-वैसे साथ ही साथ आन्तरिक व्यक्तित्व का भी विकास होना चाहिए। वैसी स्थिति में ही सहन करने और कठिनाइयों को झेलने की क्षमता बढ़ती है। जो कष्टों को सहते हैं, उनके जीवन में कष्ट कम हो जाते हैं । जो कष्टों से कतराते हैं, उन्हें अधिक से अधिक कष्ट घेरते हैं। कुछ व्यक्ति पर में एक कांटा चुभने मात्र से आकाश-पाताल को एक कर देते हैं और कुछ बड़े से बड़े कष्ट को निर्विकार भाव से सहन करते हैं। उनके चेहरे पर एक शिकन भी नहीं आती। यह परिस्थिति का अन्तर नहीं है। यह अन्तर है आंतरिक-विकास का । प्रत्येक व्यक्ति में अनन्त शक्ति है, अनन्त आनन्द और अनन्त चेतना है । यदि इनका विकास किया जाए, इनका स्पर्श किया जाए तो बाहर की घटना आएगी पर सताएगी नहीं। समस्या आएगी, पर अंधकार नहीं होगा, प्रकाश लुप्त नहीं होगा, पैर नहीं फिसलेंगे, चरण रुकेंगे नहीं, गति में अवरोध नहीं आएगा। हमारे जीवन में इन दोनों पक्षों में संतुलन आवश्यक है । मैं यह नहीं कहना चाहता कि परिस्थिति का कोई मूल्य नहीं है। वह भी आदमी को प्रभावित करती है किन्तु केवल वातावरण को ही सब कुछ मान लेने पर कठिनाई उपस्थिति होती है। आज आदमी केवल बाह्य व्यक्तित्व से परिचित है। उसके आधार पर ही सारा चिन्तन निर्मित है । इसलिए वह व्यवस्था-परिवर्तन को परिवर्तन का मूल घटक मान बैठा है । यह भ्रान्ति है । आन्तरिक परिवर्तन के बिना कुछ भी होना जाना नहीं है। __ ध्यान का प्रयोग जीवन के सर्वांगीण विकास का प्रयोग है । यह जीवन के आचरण और व्यवहार को प्रभावित करता है । समग्र व्यक्तित्व या अखंड व्यक्तित्व के लिए आवश्यक होता है कि आदमी बाहर को देखे और अन्दर को भी देखे । जो ऐसा करता है, वह अखंड व्यक्तित्व का स्वामी बन जाता है। __ महापुरुषों, अवतारों की प्रतिमाओं में आंखें अर्द्धनिमीलित दिखाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy