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अवचेतन मन से संपर्क
सीवी चली गई हैं। ये सारी प्राण की धाराएं हैं।
सामान्यत: हम समझते हैं कि हमारी सारा प्रवृत्ति-चक्र रक्त के आधार पर चल रहा है, मांसपेसियों के आधार पर चल रहा है या हड्डियों के आधार पर चल रहा है । पर ये मूल कारण नहीं हैं । हड्डियां स्वस्थ हैं, मांसपेशियां ठीक काम कर रही हैं, रक्त का संचार सुचारू रूप से हो रहा है, पर यदि प्राण की धारा सूख गई है तो सब कुछ बंद हो जाएगा। हड्डियां काम करना बंद कर देंगी, मांसपेशियां सिकुड़ने लग जायेंगी और रक्त का संचार भी रुक जाएगा । इनकी क्रिया का मूल स्रोत है—प्राण । प्राण के द्वारा सब संचालित हो रहे हैं । प्राण शक्ति जैसे-जैसे कम होती जाती है, शरीर की सारी शक्तियां कम होती है । प्राण शक्ति प्रबल होती है तो शरीर की सारी शक्तियां बनी रहती हैं । आधारभूत शक्ति है प्राण ।
___ 'एक्यूप्रेजर' की पद्धति में यही किया जाता है। शरीर के अमुकअमुक केन्द्र को दबाकर प्राण को अजस्र प्रवाहित किया जाता है । कहां से दबाना है ? कैसे दबाना है ? ये सारी बातें इस पद्धति में निष्णात व्यक्ति जानते हैं । इस शरीर में सारे रहस्य भरे पड़े हैं। इसमें सैकड़ों-सैकड़ों केन्द्र
और आयतन हैं, विद्युत्-चुम्बकीय क्षेत्र हैं। प्रत्येक व्यक्ति इन केन्द्रों का विकास कर प्राण शक्ति को विकसित कर सकता है, शक्ति और आनन्द का विकास कर सकता है, अनेक अनबुझी पहेलियों को सुलझा सकता है।
प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में शरीर को समझने पर बहुत बल दिया गया है। जो व्यक्ति शरीर के रहस्यों को नहीं जानता, वह धर्म को भी ठीक से नहीं जान पाता । जो व्यक्ति शरीर की ठीक से व्याख्या नहीं कर सकता, वह धर्म की सम्यक व्याख्या नहीं कर सकता। जिस व्यक्ति को साधना के क्षेत्र में आगे बढ़ना है, जिसको अपनी शक्ति और चेतना का विकास करना है, उसे शरीर के रहस्यों को जानना ही होगा।
___ जब व्यक्ति शरीर की शक्ति से परिचित हो जाता है तब आत्मा की शक्ति में कोई संदेह नहीं रहता। हमारे शरीर में ऐसे केन्द्र हैं, जिनसे काम
और वासना बढ़ती है, राग और द्वेष बढ़ता है। दूसरी ओर शरीर में ऐसे केन्द्र भी हैं, जिनका विकास करने पर कामना और वासना घटती है, कामना
और वासना का परिष्कार होता है, राग और द्वेष का विलय होता है । अभ्यास करते-करते, शरीर के केन्द्रों का परिष्कार करते-करते, उनका उपयोग करते-करते एक बिन्दु ऐसा आता है कि चेतना का ऊर्ध्वारोहण, ऊर्जा का ऊर्ध्वगमन हो जाता है, सारी चेतना और ऊर्जा हमारे मस्तिष्क के दाएं भाग में आ जाती है। मस्तिष्क का दायां भाग अध्यात्म का भाग है, बायां भाग लौकिक शिक्षा का भाग है, गणित, तर्कशास्त्र आदि-आदि शिक्षाओं का केन्द्र
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