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________________ १२ आंखें खुल गईं । ये राग-द्वेष की तरंगें इतनी विचित्र हैं कि बड़े से बड़ा आदमी भी इनमें उलझ जाता है । यह दर्शन बहुत स्वाभाविक लगता है कि सात धातुओं के शरीर मेंरहने वाला मनुष्य राग-द्वेष से मुक्त कैसे हो सकता है ? जिसका सारा परि कर और परिसर राग-द्वेष से भरा हुआ है, जो प्रियता और अप्रियता की ऊर्मियों से खेल रहा है, वह आदमी वीतराग नहीं हो सकता, वीतद्वेष नहीं हो सकता और जो वीतराग और वीतद्वेष नहीं हो सकता, वह सर्वज्ञ नहीं हो सकता, स्वयंभू परमात्मा नहीं बन सकता । अवचेतन मन से संपर्क 'मनुष्य सर्वज्ञ बन सकता है' — इसको स्वीकृति देने वाले दार्शनिकों ने कहा -- मनुष्य में अनन्तशक्ति है, सामर्थ्य है । जितनी शक्ति परमात्मा और ईश्वर में है, उतनी ही शक्ति प्रत्येक आत्मा में है । न केवल मनुष्य में किन्तु प्रत्येक परमाणु में अनन्त शक्ति है । जो पुद्गल है, जड़ है, चेतन नहीं है, वह भी शक्ति सम्पन्नता की दृष्टि से अनन्त शक्ति संपन्न है । बहुत अद्भुत सिद्धांत लगता है, पर है यथार्थ । यदि परमाणु में अनन्त शक्ति न हो तो परमाणु का अस्तित्व अनन्त काल तक नहीं रह सकता । जो भी पदार्थ, चाहे चेतन हो या अचेतन, अनन्त काल तक अपना अस्तित्व बनाए रखता है तो वह अपनी अनन्त शक्ति के आधार पर ही ऐसा कर सकता है । उसमें प्रतिक्षण परिवर्तन होता रहता है । किन्तु उसके पास एक एसी शक्ति है, जिसके द्वारा वह अपने अस्तित्व को बराबर बनाए हुए है । उस शक्ति का दार्शनिक शब्दावली में नाम है 'अगुरुलघुपर्याय ।' 'अगुरुलघु' एक ऐसा पर्याय है, जो न गुरु होता है और न लघु । इसी के आधार पर वस्तु अपने अस्तित्व को बनाए रखती है । यह स्वभाव पर्याय है । इसी के सहारे वह अपने स्वभाव को बनाए रख रहा है और प्रत्येक नए क्षण में अपने अस्तित्व को ढालने में समर्थ हो रहा है । वह उस क्षण के अनुरूप अपने अस्तित्व को बना देता है और उसको कायम रख लेता है । यह शक्ति प्रत्येक आत्मा और परमाणु में है । चेतन और अचेतन में शक्ति का अन्तर नहीं है । दोनों में अनन्त शक्ति है । अन्तर केवल चेतना का है। एक में चेतना है, दूसरे में नहीं है । यह भेदरेखा चेतना के आधार पर खींची गई है, शक्ति के आधार पर नहीं । मनुष्य चेतन और अचेतन- दोनों का योग है । उसका शरीर अचेतन है । उसकी आत्मा चेतन है । अचेतन और चेतन का योग मिला और एक प्राणी बन गया । प्रत्येक प्राणी दोनों का योग होता है । शुद्ध आत्मा प्राणी नहीं होती । अचेतन भी प्राणी नहीं होता । चेतन और अचेतन का योग होता है और प्राणी की निष्पत्ति हो जाती है । हम सब प्राणी हैं । हम प्राणों के सहारे जी रहे हैं, प्राणशक्ति के आधार पर जी रहे हैं, ऊर्जा के आधार पर जी रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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