SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 173
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नैतिक चेतना १६३ बड़ा प्रयत्न है। परिवर्तन हमारी चेतना की भूमिका में होना चाहिए । शारीरिक स्तर पर परिवर्तन होते हैं, मानसिक स्तर पर परिवर्तन होते हैं। परिस्थिति के स्तर पर परिवर्तन होते हैं किन्तु ये सारे परिवर्तन चेतना को परिवर्तित किए बिना अर्थवान् नहीं बनते । __ आज सबसे बड़ी अपेक्षा है कि चेतना को बदला जाए। चेतना बदल सकती है। चेतना को बदलने का अर्थ बहुत व्यापक है। जब हम चेतना को बदलने का प्रयत्न करेंगे तो शरीर को भी बदलना होगा। शरीर की प्राणविद्युत् को भी बदलना होगा, शरीर के रसायनों, फिर वे अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के हों अथवा मस्तिष्क के हों, उन्हें बदलना होगा। हमारे शरीर में सैकड़ों प्रकार के रसायन बनते हैं, उन सब में परिवर्तन लाना होगा। संस्कारों और वृत्तियों को बदलना होगा। इन सबके बदलने पर ही चेतना का रूपान्तरण होगा। आज मूल्य परिवर्तन के विषय में अनेक चर्चाएं हो रही हैं । परन्तु जीवन के मूल्य कैसे बदलें ? जब तक चेतना नहीं बदलती तब तक मूल्य नहीं बदल सकते । मूल्यों की स्थापना चैतन्य के द्वारा होती है। कोई भी अचेतन द्रव्य मूल्यों की स्थापना नहीं करता। सारे के सारे मूल्य चेतना के द्वारा प्रस्थापित होते हैं। चेतना ही उनको विकसित करती है। जहां चेतना का विकास ही नहीं है, वहां मूल्य विकसित कैसे होंगे ? __ आदिम समाज में मूल्यों की कोई चर्चा नहीं होती थी। उस समय लोग जंगलों में रहते थे। जीवन के मूल्य विकसित नहीं थे। उनकी जीवनचर्या पशुओं जैसी थी। गुफाओं में रहना, फल-फूल खा लेना, छाल पहन लेना, कुछेक प्राणियों को मार कर मांस खा लेना, बस यही उनकी जीवनचर्या थी। जैसे-जैसे सामाजिक चेतना का विकास होता गया वैसे-वैसे मूल्यों का भी विकास होता गया। जैसे-जैसे समाज प्रगति कर रहा है वैसे-वैसे चेतना भी रूपान्तरित हो रही है और मूल्य भी बदलते जा रहे हैं। कुछ लोग कहते हैं-पुराना जमाना अच्छा था, आज का जमाना खराब है । आज कलियुग है। जो लोग इतिहास के अध्येता हैं, वे इस बात से सहमत नहीं होते । इतिहास इसका साक्षी है कि आज से तीन हजार वर्ष पूर्व जो बुराइयां प्रचलित थीं, उनमें कुछ परिवर्तन हुआ है और कुछ में विकास हुआ है। प्राचीनकाल में शासक वर्ग बहुत क्रूर था। आदमी में क्रूरता के संस्कार प्रबल थे। आज का जन-मानस इतना जागृत हो गया है कि कोई भी शासक चाहने पर भी इतना क्रूर नहीं बन सकता, जितना प्राचीन शासक क्रूर होता था। साहित्य में अनेक घटनाएं हैं, जो निर्दयता की सूचक हैं । आज उनमें परिवर्तन आया है। परन्तु अतीत अच्छा था, यह कहकर सुख की सांस भले ही ली जाए किन्तु वास्तव में अतीत कैसा था, इसको पढ़कर ही जाना जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy