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बिम्ब : प्रतिबिम्ब
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दिया जाएगा तो फिर आपको कौन-सा दंड दिया जाएगा? क्योंकि मैं तो छोटा डकैत हं । छोटी-छोटी डकैतियां डालता हूं। आप तो महान् डकैत हैं, अनेक देशों को बरबाद करने वाले हैं, लूटने वाले हैं। मुझे यदि मृत्युदड मिलेगा तो फिर आपको क्या मिलेगा ? इसलिए मैं सोचता हूं कि मुझे मृत्युदंड नहीं मिलना चाहिए।
व्यक्ति सदा दूसरे को सामने रखता है। दूसरा सामने आता है और व्यक्ति अपनी स्थिति को भूल जाता है। डाकू ने यह अनुभव नहीं किया कि वह डाकू है डाका डालता है, लोगों को त्रस्त करता है, मारता है किन्तु उसने अपने सारे अपराध सिकन्दर पर डाल दिए । दूसरों को देखने की यह मनोवृत्ति मनुष्य को खतरे से बाहर नहीं ले जाती। वह उसे खतरे की परिधि में रखती है, खतरे के आसपास चक्कर कटवाती है।।
जब तक मनुष्य में एक प्रकार की चेतना नहीं जाग जाती तब तक समस्या का समाधान नहीं हो सकता । वह चेतना है—प्रक्षा की चेतना । यह द्रष्टा की चेतना है। प्रेक्षा शब्द के दो घटक हैं--प्र+ईक्षा । ईक्षा का अर्थ है-देखना। 'प्र' जुड़ा और वह प्रेक्षा बन गया। इसका अर्थ बदल गया । प्रेक्षा का अर्थ है-केवल देखना। देखना और केवल देखना-बहुत अन्तर
एक बिल्ली ने चूहे को देखा, वह देखना तो है पर केवल देखना नहीं है । एक शिकारी ने शिकार को देखा, वह देखना तो है पर केवल देखना नहीं कामुक आंखों ने सौंदर्य को देखा, वह देखना तो है पर केवल देखना नहीं है। हमें अन्तर स्पष्ट समझ लेना चाहिए। एक है वासना भरी दृष्टि से देखन और एक है शुद्ध दृष्टि से देखना, केवल देखना। शुद्ध दृष्टि में केवल परसेप्सन है, कोरा दर्शन है, उसके साथ और कुछ भी जुड़ा हुआ नहीं है । जब मनुष्य का चिंतन, विचार और दृष्टि वासना से प्रेरित होती है, तब देखना शुद्ध नहीं रहता, वहां ज्ञान शुद्ध नहीं रहता । जब चेतना अन्तर-जगत् में फैलती है तब वह स्वच्छ और निर्मल बनी रहती है । जब वह वस्तु-जगत् में फैलती है तब वह अनेक सम्पर्कों से जुड़कर निर्मल नहीं रह पाती। प्रेक्षा ध्यान के अभ्यास से यह सीखना है कि शुद्ध चेतना को, वासनामुक्त चेतना को देख सकें । यदि यह अभ्यास बढ़ता है तो धीरे-धीरे दृष्टिकोण बदल जाता है । दृष्टिकोण का परिवर्तन बहुत महत्त्वपूर्ण बात है।
____ आंख आंख के स्थान पर है । अनुभव का तंत्र अनुभव के तंत्र के स्थान पर है । हमारे संवेदन-केन्द्र मस्तिष्क में यथावत हैं । सब अपने अपने स्थान पर हैं। वे नहीं बदलते पर उनके पीछे काम करने वाली प्रेरणा बदल जाती है, परिणाम बदल जाते हैं । इसी का नाम है-दृष्टिकोण का परिवर्तन । जब एक प्रकार की वासना, चाहे फिर वह रागात्मक हो या द्वेषात्मक-व्यक्ति के जीवन
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