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________________ अनेक रोग : अनेक चिकित्सा है ? प्रशांतवाहिता कैसे प्राप्त हो सकती है ? आज अनेक व्यक्ति यह शिकायत करते हैं- मानसिक तनाव बढ़ रहा है, रक्तचाप संतुलित नहीं है, हार्टट्रबल बढ़ रही है, मस्तिष्क चिताओं के भार से दबा रहता है आदि-आदि। ये सारी शिकायतें सर्व सामान्य बन गई हैं । इसमें आश्चर्य नहीं है, क्योंकि जिस प्रकार का जीवन क्रम चल रहा है, उसमें इन शिकायतों का होना अनिवार्य है । ये दोष उत्पन्न होते हैं, बढ़ते हैं, पर इनका शोधन करने का प्रयत्न नहीं होता। इसलिए ये शिकायतें मिटती नहीं, बनी की बनी रहती हैं । कोई व्यक्ति प्रेक्षा ध्यान के प्रयोग को बहुत बड़ा साधना का प्रयोग न भीमाने पर यह वर्तमान जीवन के लिए जीवातु है, बहुत उपयोगी है । जीवन की यह सामान्य प्रक्रिया है कि आदमी स्नान कर शरीर पर जमे मैल को उतार देता है । इसी प्रकार चेतना पर मन पर प्रतिदिन जमने वाले मैल को साफ करना भी आवश्यक होता है । यदि प्रतिदिन यह शुद्धि कर दी जाती है तो फिर मैल जमता नहीं, गाढ़ा नहीं होता, सरल प्रयत्न से दूर हो जाता है । जब मैल अधिक जम जाता है, गाढ़ा और चिकना हो जाता है तब उसको दूर करने में बहुत आयास करना पड़ता है । यदि हम प्रतिदिन प्रयोग करें और दिन भर में जमे मैलों को नष्ट करते रहें तो हमारी शुद्धि बनी रह सकती है । प्रश्न हो सकता है— प्रयत्न कब तक करते रहेंगे ? उत्तर होगाप्रयत्न तब तक करने होंगे जब तक मैल जमते रहेंगे। किसी ने पूछा- दीया कब तक जलाओगे ? उत्तर दिया गया जब तक अंधेरा रहेगा, तब तक दीये जलते रहेंगे । आदमी यह प्रश्न कभी नहीं करता कि रोज खाते हैं, पीते हैं, क्या आवश्यकता है ? भूख रोज लगती है इसलिए आदमी रोज खाता है। प्यास रोज लगती है इसलिए आदमी रोज पानी पीता है। जीवन के लिए अनेक बातें जरूरी लगती हैं, पर यह जरूरी क्यों नहीं लगता कि चेतना पर ईर्ष्या, घृणा, ममत्व, क्रोध, अभिमान, कामवासना आदि का मैल रोज जमता है तो रोज उसका परिमार्जन कर दिया जाए। मकान जाता है । मन को रोज साफ क्यों नहीं किया जाता ? ही आंधी और तूफान आते हैं ? क्या चित्त में आंधी और कोई यह सोचे कि मकान को रोज साफ क्यों करें ? क्यों रोज कचरा निकालें ? चार महीनों में एक दिन साफ कर लेंगे, तो उस मकान की क्या हालत होगी ? वह कभी साफ होगा ही नहीं या होगा भी तो बहुत प्रयत्न के को रोज साफ किया क्या केवल मकान में तूफान नहीं आते ? बाद । १४३ मल का अर्जन रोज होता है तो उसका विसर्जन भी रोज होना चाहिए। रोज जमे, रोज उतरे -- यह विशुद्धि की प्रक्रिया है । ध्यान की प्रक्रिया कोई अतिरिक्त प्रक्रिया नहीं है । यह कोई विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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