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________________ अतीत और भविष्य का संपर्कसूत्र १२५ नाड़ियां ऊपर-नीचे फैलती रहती हैं। इन्द्रियां, जीभ, कान, आंख----इन सबका संबन्ध नाड़ी-संस्थान से है। हम कोई चीज खाते हैं, तत्काल उसकी सूचना मस्तिष्क तक पहुंच जाती है । खाने की इच्छा होती है तब मस्तिष्क से निर्देश होता है और खाते हैं तब सूचना चली जाती है । पानी की एक बूंद आकर हाथ पर गिरी और तत्काल मस्तिष्क तक सूचना पहुंच गई । यदि पानी गर्म है तो मस्तिष्क से निर्देश आ जाएगा कि दूर रहो, बचकर रहो । यदि पानी ठंडा है, अनुकूल है तो निर्देश मिल जाएगा कि पी लो, स्नान कर लो। यह सारा कार्य नाड़ी-संस्थान के माध्यम से होता है। आंख ने कोई रूप देखा । सूचना मस्तिष्क तक पहुंच गई। रूप अच्छा लगा तो मस्तिष्क में एक प्रतिक्रिया पैदा हो गई और उसने चित्त को चंचल बना डाला। बाहरी जगत् से जो संवेदना आती है, वह गहरी होती है तो मस्तिष्क में क्षोभ पैदा करती है और चित्त चंचल बन जाता है। बाहरी जगत् की सारी संवेदनाएं, नाड़ीसंस्थान के माध्यम से चित्त को चंचल बना रही हैं । दूसरी ओर हमारे भीतर के संस्कार चित्त को चंचल बना रहे हैं। आज का शरीर शास्त्र नाड़ी-संस्थान के विषय में अनेक जानकारियां देता है, किन्तु कर्म के विषय में उसकी कोई जानकारी नहीं है । संस्कार, वृत्ति और संज्ञा के विषय में उसका कोई ज्ञान नहीं है । ज्ञान आगे बढ़ तो रहा है, उसका विस्तार हो रहा है। पहले जहां केवल नाड़ी-संस्थान के विषय में ही सोचा जा रहा था, आज इन दशकों में आनुवंशिकता के क्षेत्र में बहुत चिन्तन हुआ है । "जीन' के विषय में नई-नई गवेषणाएं हुई हैं और इतने रहस्यों का उद्घाटन हुआ है कि यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है-आज का विज्ञान कर्म के परमाणुओं की खोज के निकट पहुंच गया है। 'जीन' को एक प्रकार से, कर्म की ही खोज कहना चाहिए। नाड़ी-संस्थान, आनुवंशिकता, कर्म, कर्मशरीर, कर्म शरीर के प्रभाव और कर्म शरीर से उत्पन्न होने वाली प्रतिक्रियाएं-संज्ञा, संस्कार, वृत्ति आदि--ये सारे चित्त की चंचलता के कारण हैं । ये चित्त को चंचल बनाने के साधन हैं । चंचलता को कम करने का उपाय है-एकाग्रता, चित्त का निरोध । अर्थ गलत समझ लिया गया। निरोध का अर्थ रुक जाना नहीं है, निर्विकल्प हो जाना नहीं है। जैन आगम उत्तराध्ययन का एक वाक्य है-'एकग्गं चित्तनिरोहं करेइ' -एकाग्रता से चित्त का निरोध होता है । पर यहां निरोध का अर्थ रुक जाना नहीं है। निरोध का अर्थ है-एक बिन्दु पर टिक जाना। किसी व्यक्ति ने पूछा-देवेन्द्र घर में है ? उत्तर दिया-नहीं है। किसी ने सीधा पूछ लिया-देवेन्द्र है ? उत्तर दिया-नहीं है। क्या देवेन्द्र मर गया ? क्या उसका अस्तित्व ही समाप्त हो गया ? नहीं। उत्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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