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________________ अतीत और भविष्य का संपर्क सूत्र ध्यान करने वाले लोग चित्त का निरोध करना चाहते हैं। चंचलता को मिटाना चाहते हैं । चित्त चंचल है, यह उतना ही सत्य है जितना कि दिन में सूर्य का प्रकाश । प्रश्न है-क्या चित्त की चंचलता को मिटाया जा सकता है ? क्या चित्त का निरोध किया जा सकता है ? इस प्रश्न का समाधान हजारों वर्षों से खोजा जाता रहा है, खोजा गया है और उपायों का प्रयोग किया गया चित्त चंचल क्यों है ? जब तक हम मूल समस्या पर विचार नहीं करेंगे तब तक समाधान भी उपलब्ध नहीं होगा। चित्त चेतना है पर उतनी स्पष्ट नहीं है । जो अधिक स्पष्ट हो, उस पर ध्यान देना चाहिए । हम जहां हैं, जिस भूमिका पर जी रहे हैं, वहां सबसे निकट की वस्तु है शरीर । शरीर साथ है, दिखाई देता है। चित्त दिखाई नहीं देता। कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिलेगा, जिसने चित्त को देखा हो। किसी भी व्यक्ति को दूसरे का चित्त दिखाई नहीं देता। दूसरे व्यक्ति की बात छोड़ दें। अपना चित्त भी अपने आप को दिखाई नहीं देता। स्वयं का शरीर दिखाई देता है और दूसरे का शरीर भी दिखाई देता है। .. समस्या का मूल सूत्र है शरीर में । हमें सबसे पहले शरीर पर ध्यान केन्द्रित करना होगा । शरीर में ऐसी कौन सी प्रक्रिया हो रही है, जिससे चित्त की चंचलता निर्बाध गति से चल रही है । हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण भाग है-नाड़ी-संस्थान । चमड़ी, हड्डियां, मांस, रक्त, फेफड़ा, हृदय, गुर्दा ----ये सब अवयव महत्त्वपूर्ण हैं, शरीर की यात्रा को संचालित करने वाले हैं। किसी एक अवयव में गड़बड़ी होती है तो पूरा शरीर अस्त-व्यस्त हो जाता है। किन्तु इन सभी अवयवों में जो चेतना की शक्ति है, जो संवेदन की शक्ति है, कुछ करने की शक्ति है, वह सारी नाड़ी-संस्थान से ही प्राप्त होती है । हमारे पूरे शरीर में नाड़ी-संस्थान फैला हुआ है। जब तक नाड़ी-संस्थान काम करता है, तब तक आदमी जीता है। नाड़ी-संस्थान का कार्य बंद होते ही आदमी का जीवन समाप्त हो जाता है । हमारे पूरे शरीर में दो प्रकार के नाड़ी-तंतु फैले हुए हैं । एक है-ज्ञानवाही तंतु और दूसरा है क्रियावाही तंतु । पूरे चर्म पर और चर्म बिन्दुओं पर ये फैले हुए हैं। इनका काम है बाहरी जगत् से संपर्क और बाहरी संपर्क से प्राप्त संवेदन को मस्तिष्क तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003084
Book TitleAvchetan Man Se Sampark
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1992
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Yoga
File Size9 MB
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